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Sunday, May 12, 2013

सेक्चुअल डिज़ायर्स और परिवार





इंसान का जिस्म अलग-अलग अंगो से मिलकर बना है और उन अंगो के बीच एक क़ुदरती ताल्लुक़ हुआ करता है इन अंगो का स्वस्थ रहना आवश्यक हुआ करता है वरना शरीर धीरे धीरे ख़त्म होने लगता है | उसी तरह समाज भी छोटे बड़े परिवारों से मिल कर बनता है। इन परिवारों में संस्कार , समाज धर्म और देश के कानून की इज्ज़त का होना आवश्यक हुआ करता है | ऐसा न होने से परिवार बिखरने  और समाज भ्रष्ट होने लगता है|

इंसान कुदरती तौर से ज़िन्दा रहना चाहता है और केवल जिंदा ही नहीं दुनिया के ऐश ओ आराम भी चाहता है | ऐसे में वो अपना जीवन पैसा कमाने और अपनी नस्ल को आगे बढाने की फ़िक्र में पूरे जीवन लगा रहता है |सही उम्र में शादी और अपने परिवार को चलाने के लिए आवश्यक पैसा कमा लेने तक कोई मुश्किल समाज के लिए नहीं पैदा होती | मुश्किल जब शुरू होती है जब इस इंसान की भूख बढ़ने लगती है और यह अपनी इन्द्रियों के वश में होने लगता है | अब वो लग जाता है आवश्यकता से अधिक धन जमा करने में और सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए अनैतिक संबंधों को बनाने में | जबकि यह सेक्चुअल डिज़ायर्स इंसान में अल्लाह ने इसलिए बनाई है की इंसान जोड़े बनाये और अपनी नस्ल को आगे बढ़ाये| समाज में असंतुलन तब पैदा होता है जब औरत और मर्द अपने रिश्तो  को केवल सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करने लगते  है |


ऐसे में इंसान धन का लोभी होता जाता है और धन कमाने के लिए सही या गलत किसी भी रास्ते पे चलने से खुद को नहीं रोक पता  | यही हाल उनका भी होता है जो सेक्चुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए एक स्त्री या पुरुष से संतुष्ट नहीं होते | यह वो लोग हैं जो हकीकत में मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं और इनकी बीमारी का कारण होता है इनका अपने धर्म और अपने समाज के बनाये उसूलों पे न चलना|
यह माता पिता की ज़िम्मेदारी होती है की अपनी ओलाद में अच्छे संस्कार दें जिससे एक अच्छा समाज बन सके | इसलिए जब इंसान शादी करने की सोंचता है तो न उसे धन देखना चाहिए और न ही खूबसूरती बल्कि मर्द को अपने बच्चों की अच्छी माँ की तलाश करनी चाहिए और औरत को अपनी ओलाद के लिए अच्छे बाप की तलाश करनी चाहिए | कोई भी औरत या मर्द अच्छे माता पिता तब ही बन सकते हों जब वो खुद संसकारी हों ,अपने धर्म का पालन करने वाले हों | रिश्वत खोर पुरष और  यौन आकर्षण द्वारा समाज में अपनी पहचान बनाने वाली महिला से अपनी ओलाद की सही परवरिश की उम्मीद करना गलत होगा | आज हम जिस समाज में रह रहे हैं वहाँ ग़बन, चोरी, रिश्वतखोरी, आतंकवाद और बलात्कार जैसे ख़बरों की कोई कमी नहीं है | आज कल तो ऐसा लगता है औरतों और बच्चियों का समाज में बच के रहना मुश्किल होता जा रहा है | सवाल यह उठता है की कोई बच्चा पैदा होते ही तो चोरी और बलात्कार सीखता नहीं यह तो हम ही हैं जो एक मासूम बच्चे को अपने जैसा बना देते हैं | आज कल तो बचपन में बच्चे को माँ की जगह आया या बेबी सिटींग का प्यार मिलता है और बच्चा खुद को अकेला सा महसूस करने लगता है और जब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करने के लिए उसके माता पिता पास नहीं होते तो समाज से सीखने की कोशिश करने लगता है | ऐसे में जब युवा होता है तो सेक्स के बारे में जानने के लिए बाहरी दुनिया का सहारा लेता है और इस तलाश में उसकी मुलाक़ात कुछ बिगड़े बच्चों ,पत्रिकाओं, पोर्न फिल्म और गन्दी किताबों से होने लगती है | वो यह जान ही नहीं पाता की यह सेक्स की भूख असल में इस और इशारा कर रही है की अब तुम अपना परिवार बनाने के काबिल हो रहे हो इसलिए इसके बारे में जानो और इसकी अहमियत को समझो |ऐसे में युवा वर्ग धैर्य और सहनशीलता से दूर हो जाता है और इनके मुख्य कारण है परिवार से प्यार का न मिलना , समाज में भ्रष्टाचार का होना , स्कूल, कॉलेज का अविवेकपूर्ण वातावरण, टीवी, सिनेमा,इन्टरनेट पे मौजूद अश्लीलता आदि

गाँवो के बहुत से घरों में परिवार का मतलब होता है मर्द की दबंगई | बाहर जा के कमाना, फिर शराब और नाचगाना देखना और घर आके बीवी पे रॉब गांठना और गुस्सा आ जाने पे मार पीट करना | औरत को तो जैसे अपनी हवस का शिकार बनाना मर्द का जन्मसिद्ध अधिकार हो |आज की औरत भी पुरुषों की बराबरी के चक्कर में अपनी ही औलाद की दुश्मन बनी हुई है उसे यह ही नहीं समझ आ रहा की ओलाद की बेहतरीन परवरिश से अच्छा कोई और काम नहीं है | पैसा तो वैसे ही मर्द कमा के घर चला लेता था | अब क्या औरत धन कमा  के घर लाने पे अधिक सुखी है ? यकीनन नहीं क्योंकि बहार जा के कमाओ  और घर की ज़िम्मेदारी भी संभालो ,दोनों काम उसके सर पे आ गया है और ऊपर से माँ बाप के प्यार के अभाव में बिगडती ओलाद का सर दर्द अलग से झेलो | इसलिए महिलाओं को भी अपनी सही जिम्मदारी को समझते हुआ पहले अपने परिवार की और ध्यान देना चाहिए |

आज जिस समाज में हम रह रहे हैं यह केवल सामने से देखने में संस्कारी दिखता है लेकिन अंदर से इसमें रह रहे लोगों में एक धन का लोभी और महिलाओं को इस्तेमाल का सामान समझने वाला जानवर छुपा होता है | आज इन्टरनेट पे आने वाले लोगों में से ६०% यहाँ पोर्न अवश्य तलाशते हैं और ४०% इसमें से चाइल्ड पोर्न और एब्यूज पोर्न को तलाशते हैं | क्या ऐसे लोग जो चाइल्ड पोर्न तलाशते हैं उन के हाथ कोई गुडिया जैसे ५ साल की बच्ची लग जाए तो क्या यह दरिन्दे नहीं हो जाएंगे या अबुस पोर्न को तलाशने वाले किसी दामिनी को बक्श देंगे ? सामने से इनको पहचान बहुत मुश्किल हुआ करती है | ऐसे समाज में बढ़ता बच्चा युवा होते होते अपनी इंसानियत खो चुका होता होता है और नतीजे में एक शराबी ,बलात्कारी और क्रूर मर्द बन के सामने आता है |

पहले माता-पिता अपने बच्चों के सुख-दु:ख और अपनेपन के साथी थे परंतु आज भौतिकता एवं महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में व्यस्त हो गए हैं| जितना एक बलात्कारी अपने इस कुकर्म का ज़िम्मेदार है उनता ही उसके माता पिता भी ज़िम्मेदार हैं | बलात्कारी को तो कानून सजा देगा लेकिन इन माँ बाप को कौन सजा देगा ? यकीनन इनको समाज सजा दे सकता है लेकिन उसके लिए समाज भी तो ऐसा हो जो संसकारी हो बलात्कारी न हो |इसका मतलब यह नहीं की समाज में आज अच्छे और संस्कारी लोगों की कमी है लेकिन इनकी संख्या इतनी कम है की यह समाज की बुराईयों के खिलाफ लड़ नहीं पा रहे हैं |कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि मनोवैज्ञानिक एवं पारिवारिक कारक अपराध की ओर उन्मुख करते हैं।

इस समस्या का हल यही है की इंसान खुद में बदलाव लाये और समाज में अच्छे परिवारों की संख्या में बढ़ोतरी हो और इसकी तैयार वहाँ से करनी होगी जहां से परिवार बनाने की तैयारी की जाती है | शादी के लिए लड़की चाहिए तो ऐसी तलाश करो जो आपके बच्चों की अच्छी माँ बन सके ऐसी संस्कारहीन नहीं जो अपने यौन आकर्षण द्वारा समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करती हो या धन को अपने परिवार से अधिक अहमियत देती हो और इसी प्रकार ईमानदारी से कमाने वाला और अपने परिवार को प्यार देने वाला और औरत की इज्ज़त करने वाला मर्द ही एक अच्छा समाज दे सकता है |

बुरी तेरी नज़र है और बुर्का पहनू मैं ?



इधर लगातार २-३ लेख मैंने महिलाओं पे हो रहे ज़ुल्म के कारणों का विश्लेषण करते हुए लिखे और हर प्रकार की संभावनाओं पे अपनी बातें आप सभी के सामने रखी. सहमती असहमति के बीच से होता हुआ  कुछ विवादों मैं भी घिरा लेकिन ब्लॉगर का सहयोग मिलता रहा और उनके विचारों औरपोल के नतीजे सच्चाई को बयान  करते रहे.

यौन हिंसा किसी महिला या बालिका के खिलाफ किया गया ऐसा यौन व्यवहार है जो उसकी इच्छा के खिलाफ किया गया हो ; इसमें भुक्तभोगी की सहमति नहीं होती है. इन यौन हिंसाओं के खिलाफ आवाज़ अवश्य उठानी चाहिए और इस पे रोक भी लगनी चाहिए. लेकिन इसके लिए यह जानना आवश्यक है की इन यौन हिंसाओं का दोषी कौन है, इसके क्या कारण हैं और इसे कैसे रोका जा सकता है?

यौन हिंसा के बहुत से कारण हैं जिनका मैं ज़िक्र क्र चूका हूँ उसमें से  एक   महिलाओं के उत्तेजक वस्त्रों को भी माना जा रहा है. .  कई जजों और पुलिस अधिकारिओं ने भी इस बात को स्वीकार है लेकिन इस बात को अस्वीकार  करते हुए कल महिलाओं ने टोरंटो, लंदन और सिओल की नकल करते हुए वैसा ही  दिल्ली मैं इंडिया का पहला स्लटवॉक! बेशर्मी मोर्चा निकाला.

सबसे पहला सवाल यह उठता है की यह मोर्चा केवल पुरुषों के ही खिलाफ क्यों? क्या हिंदुस्तान मैं ऐसी महिलाओं, माओं की कमी है जो अपनी बेटियों को उत्तेजक कपडे पहन के जिस्म की नुमाईश करने से रोकती हैं और ऐसे पहनावे को यौन हिंसा का ज़िम्मेदार मानती  हैं?क्या ऐसी युवतीओं की कमी है जो किसी लड़की को मिनी या मिडी मैं देख के यह कहती हैं की लगता है इसके बहुत से बॉय फ्रेंड होंगे?


मुझे तो लगता है की यह प्रदर्शन दर असल हिन्दुस्तानी सभ्यता और संस्कृति को औरतों पे ज़ुल्म का ज़िम्मेदार  मानते हुए उसके  खिलाफ था और मकसद पश्चिमी सभ्यता को हिंदुस्तान मैं लाने की हिमायत करना थी . क्या हमारे हिन्दुस्तान कि सभ्यता महिलाओं पे ज़ुल्म और बलात्कार सिखाती है और पश्चिमी सभ्यता औरतों कि इज्ज़त करना?

पुराने वक़्त मैं बलात्कार और औरतों पे ज़ुल्म बड़ी उम्र के मर्दों कि दबंगई के नतीजे मैं हुआ करते थे जो आज भी देखने को मिलते  है लेकिन आज यह कमसिन नौजवानों मैं भी देखने को मिलने लगा है और इसकी शिकार अक्सर ४-६ वर्ष कि बच्चियां  भी हो जाया करती हैं. यह नौजवान शायद इसी आज़ाद पश्चिमी सभ्यता, पोर्नोग्राफी ,अश्लील फिल्में गाने और उत्तेजक वस्त्रों को देख देख के अपना कण्ट्रोल को दिया करते हैं. 

कुदरत ने नर और मादा चाहे वो पेड़ पौधे हों , जानवर हो या इंसान को ऐसा बनाया है की दोनों को एक दुसरे के प्रति आकर्षण देख के ही पैदा होता है. और यही आकर्षण सहमती होने पे सेक्स मैं बदल जाता है. इस आकर्षण को तो ख़त्म करना संभव नहीं और जब किसी स्त्री का शरीर खुला दिखता है तो मर्द का उसे देखना कोई अजीब सी बात नहीं. होना तो यही चाहिए की मर्द औरत पे चाहे वो उत्तेजक कपडे ही क्यों ना पहने हो बार बार नज़रें ना डाले लेकिन महिलाओं को भी उत्तेजक कपडे नहीं पहनने चाहिए इस सच्चाई को कुबूल करते हुए की उनका  का जिस्म मर्द के लिए और मर्द का जिस्म औरत के लिए आकर्षण का कारण हुआ करता है.

फिल्मो के गरमा गर्म गाने में  हिरोइन  या डांसर उत्तेजक कपड़ों मैं पेश ही इसी लिए की जाती हैं की फिल्म को अधिक से अधिक लोग देखें. क्या इस स्त्री पुरुष के आपसी आकर्षण को ख़त्म करना संभव है और यदि ऐसा हो गया तो क्या होगा? 

आज कल समलैंगिक एक तरफ मोर्चे निकालते  हैं और अपनी आज़ादी के नाम पे स्त्री कि जगह पुरुषों से ही काम चला लेते हैं वंही दूसरी तरफ महिलाएं कहती हैं हमें ना देखो. कहीं ऐसा हो गया कि पुरुषों ने महिलाओं कि जगह पुरुषों को ही देखना शुरू कर दिया तो नज़ारा क्या होगा. यकीन जानिए इन महिलाओं मैं से ७५% सजना संवारना बंद कर देंगी. जब किसी को उनका जिस्म देखने लायक लगता ही नहीं तो क्यों खुला रख के बाज़ारों मैं घूमना?

बराबरी के अधिकार के नाम पे वो दिन भी दूर नहीं दिखते जब पत्नियाँ पति  से कहेंगी  मेरा जिस्म तेरे बाप का घर  नहीं की तेरी औलाद को ९ माह गर्भ मैं रखूँ. बच्चों को दूध पिलाना तो धीरे धीरे कम होता जा रहा है क्यों कि इस से उन महिलाओं का फिगर खराब हो जाता है.

महिलाओं के साथ ज़ुल्म केवल सड़कों पे नहीं होते  बल्कि पति के घर पे भी ज़ुल्म हुआ करता है और उसकी मर्ज़ी के खिलाफ सेक्स जिसे बलात्कार कहा जाता है हुआ करता है.  महिलाओं के साथ पतियों द्वारा मार पीट जैसे अपराध भी घरों मैं आम हैं. आज के समाज मैं औरत की शादी हो जाने के बाद वो अपने मैके के लिए भी परायी हो जाती है, तलाक ले ले तो भी अकेले रहना समाज दूभर केर देता है तरह तरह के लांछन लगाये जाते हैं ऐसे मैं मजबूर औरत  घर मैं ही पति से बलात्कार करवाने और मार खाने को मजबूर होती है. इसके लिए कौन मोर्चा निकालेगा और कब? और यदि बेशर्मी मोर्चा निकल भी जाए तो क्या यह इस समस्या का समाधान होगा? 

मोर्चे निकलना है तो यौन हिंसा, महिलाओं के साथ हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ निकालो ना कि आज़ादी के नाम पे उत्तेजक कपडे पहनने कि मांग को ले कर मोर्चा निकालो. ऐसे बेशर्मी मोर्चे से हिन्दुस्तान की अधिकतर  महिलाएं भी सहमत नहीं आप को यदि यकीन ना हो तो आस पास कि महिलाओं से बातें करें आप को सभी कहेंगी ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का यह तरीका सही नहीं और यह समस्या का हल भी नहीं.

ख़बरों के अनुसार यह बेशर्मी मोर्चा सफल नहीं रहा क्योंकि इसमें ४०० पुलिस वाले २०० मीडिया वाले और १०० आम जनता और भाग लेने वाले शामिल थे.  बीबीसी हिंदी ने अपनी रिपोर्टिंग मैं बताया कि जंतर-मंतर में बेशर्मी मोर्चा प्रदर्शन के ठीक बगल में ही सड़के के किनारे पनवारी लाल और सुमन ने एक छोटा सा झोपड़ा खड़ा किया है, जहाँ पिछले कुछ महीनों से वो अपनी छह साल से गायब बेटी लक्ष्मी को ढूँढ़ने के लिए प्रशासन के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं.
उनके पास ना ही मीडिया का साथ है, ना ही प्रदर्शनकारियों की फ़ौज. बस बेटी की छोटी सी तस्वीर बाहर टाँग रखी है
सवाल उठता है कि इस यह गरीब की बेटी लक्ष्मीको तलाशने के लिए कौन सी महिलाएं मोर्चा निकालेंगी  और कब?

बलात्कारी को सख्त से सख्त सजा कि मांग करना सही, महिलाओं की  इज्ज़त की जानी चाहिए यह भी सही है लेकिन “मेरी छोटी स्कर्ट का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है.” “सोच बदलो, कपड़े नहीं.” या बुरी तेरी नज़र है और बुर्का पहनू मैं ? जैसी बातों का कोई मतलब समझ मैं नहीं आता. या तो यह तै कर लिया जाए कि मेरा शरीर है मैं जो चाहूँ पहनू और तुम्हारी आँख है तुम जो चाहो देखो.यही काम तो जंगली जानवर भी किया करते हैं.

यह सच है कि महिलाएं यदि उत्तेजक कपडे भी पहनती हैं तो भी पुरुषों को उनको बेईज्ज़त करने का, उनपे भद्दे कमेन्ट करने का या बलात्कार का लाइसेंस नहीं मिल जाता इस्लाम मैं भी पर नारी परदे मैं हो या बेपर्दा पहली नज़र के बाद दूसरी नज़र डालना पाप कहा जाता है लेकिन महिलाओं को भी उत्तेजक कपडे पहन कर पुरुषों को आकर्षित करने से बचना चाहिए. क्यों की ताली दो हाथों से ही बजती हैं.

वैसे भी उत्तेजक कपड़ों के बावजूद ९९.९% पुरुष नज़र से चाहें देख लें बलात्कारी नहीं होते. अपराध रोकने के लिए अपराधी को सजा के साथ साथ उसके कारणों को भी ख़त्म करना होता है. चोरी रोकनी हैं तो चोरों को सजा दो लेकिन साथ साथ पहरेदार बिठाओ और घरों मैं ताले भी लगाओ.


भारतीय सभ्यता और संस्कृति यौन हिंसा का पाठ नहीं पठाती बल्कि महिलाओं कि इज्ज़त करना सिखाती है यह हम है जो दूसरों कि सभ्यता जहां ना माँ कि इज्ज़त है ना बहन ,जहां स्त्री के जिस्म का इस्तेमाल व्यापार और ताल्लुकात बढ़ाने के लिए किया जाता है उसे अपनाने की हिमायत करने लगे है.

ज्वलंत मुद्दा


बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है. बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का प्रयास बहुत  कम किया गया है. समाधान के तौर पे हमेशा कानून व्यवस्था को कोसने  और बलात्कारी को सख्त सजा का सुझाव दे के मामला भुला दिया जाता है और नतीजे मैं बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं. आज आवश्यकता है इस समस्या का हल तलाशने की.


बलात्कारियों की कई किस्में हुआ करती हैं और उनका फर्क भी हमें मालूम होना चाहिए.इंसान के जीवन मैं रोटी कपडे के बाद सेक्स कि ज़रुरत सबसे अधिक महत्व रखती है. किसी को यह रोटी कपडा ,मकान और सम्मान के बाद ज़रूरी लगता है,कोई रोटी के बाद ही सेक्स को अहम् मानता है. मनुष्य के जीवन मैं अहमियत से इनकार नहीं.

किसी को सेक्स की  कम ख्वाहिश होती है किसी को अधिक कोई सेक्सोहॉलिक होता है तो कोई इसका सही ज्ञान ना होने से मनोविकृति का शिकार हो जता है. इंसान का शरीर एक उम्र आने पे खुद यह इशारे करने लगता है कि अब उसके शरीर को सेक्स कि ज़रुरत है और ऐसे मैं वो विपरीत लिंग वाले के प्रति खिंचाव और उसके शरीर  के प्रति खिंचाव और उत्सुकता महसूस करने लगता है.हमारे समाज के ग़लत रीति रिवाजों के चलते युवा  सही उम्र मैं सेक्स के लिए साथी तो हासिल नहीं कर पाता लेकिन समाज मैं आ गयी बुराईयों जैसे पोर्नोग्राफी,बाज़ारों मैं अर्धनग्न औरतें , हॉट  फिल्में इत्यादि के ज़रिये सेक्स  के बारे मैं बहुत कुछ जान लेते हैं. और इंतज़ार करते हैं कि कब उन्हें भी समाज के बनाये सही और जाएज़ रास्ते से कोई जीवन साथी मिले. अधिकतर लोग तो इंतज़ार कर लेते हैं या समाज की  नज़रों से बच  कर एक दूसरे की सहमती से  अपनी सेक्स की  इच्छा पूरी करने के लिए साथी पा जाते हैं और इसमें से कुछ युवा जो अपनी सेक्स की इच्छा को काबू नहीं कर पाते बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाते है.
ऐसे युवा बलात्कारियों को इस कार्य से आसानी से रोका जा सकता है यदि उनको सही सेक्स की शिक्षा देते हुए  सेक्स की इच्छा को काबू करना सीखाया जाए, सही उमर मैं जीवन साथी का साथ दिया जाए और समाज से पोर्नोग्राफी, अश्लील इश्तेहार, गाने पे रोक लगाई जाए. पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से आज के युवक को बाहर आना होगा और अपने संस्कारों की तरफ ध्यान देना होगा तब कहीं जा के ऐसे बलात्कार करने वालों को सही राह पे लाया जा सकता है. इन युवाओं को कानून की सजा से अधिक समाज के सहयोग की आवश्यकता है. महिलाओं को भी इसमें सहयोग करना चाहिए. कानून आप की सुरक्षा तभी बेहतर तरीके से कर सकता है जब आप को खुद की सुरक्षा कैसे की जाए इसकी फ़िक्र हो.याद रहे 
 
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है. पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता  जो महिलाओं  को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है. महिलाऐं जो किसी समूह या सार्वजनिक स्थानों पर अपने शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढ़कती, वास्तव में वो स्वयं को एक बिकाऊ वस्तु के रुप में ख़रीदारों के सम्मुरव प्रस्तुत करती हैं. वो बजाए इसके कि एक, योग्य सक्षम तथा लाभदायक इन्सान के रूप, में समाज में पहचानी जाए, और अपने ज्ञान ,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों को दुसरों को पहचानवाए बने केवल अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत करके  वो मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती है.
पश्चिमी महिला जो वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई.
 
बलात्कार के हकीकत मैं बड़े गुनाहगार वो हैं जो ताक़त के पैसे के बल पे महिलाओं के साथ अत्याचार और बलात्कार करते हैं और इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की औरत परदे मैं है या बेपर्दा या क्या पहनती है?
गाँवों में अमीरों द्वारा गरीबों को सज़ा देने के लिए उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने की या उनकी महिलाओं को ज़बरदस्ती उसके घरवालों को डरा के अपने बिस्तर की शोभा बना लेने की मानसिकता आम है गाँव की औरत जो पहले से ही  अपने अधिकारों से अनजान, और आर्थिक सामाजिक तौर पर बहुत पिछड़ी हुई है,जब अमीरों के ज़ुल्म का शिकार होती है तो आवाज़ भी नहीं उठा पाती और ऐसे अधिकतर मामले दबे रह जाते हैं.

औरतों के साथ बलात्कार, अपहरण,वैश्यावृति ,सेक्स रैकेट यह सब ताक़त और पैसे के ज़ोर पे ही किया जाता है और इसका शिकार होती है कमज़ोर, ग़रीब घरों की महिलाएं या मध्य वर्गीय घरों की वो युवतियां जो अमीरों की झूटी शान और चमकती दुनिया को आसान रास्ते से पा लेना चाहती हैं.यदि भारत के सिर्फ नामचीन लोगों से जुड़े हुए सेक्स कांड की चर्चा की जाए तो एक लम्बी फेहरिस्त तैयार की जा सकती है
यकीनन इनको रोकने के लिए सख्त कानून की आवश्यकता है और महिलाओं मैं जागरूकता लाने की आवश्यकता है. जिस प्रकार आज समाज मैं भ्रष्टाचार कैंसर  की तरह ला इलाज होता जा रहा है उसी प्रकार औरतों के देह के साथ खिलवाड़ और देह व्यापार भी ला इलाज बीमारी का रूप ले चुका है.
स्वस्थ व सुखी जीवन के लिए संयमित सेक्स को उपयोगी बताया गया है लेकिन भारत में सेक्स को वर्जना की तरह देखा जाता है. माता-पिता अपने बच्चों को यौन संबंधित जानकारी देने से परहेज करते हैं जबकि हम सभी यह जानते हैं की  इंसान की फितरत वर्जित माने जाने वाले विषयों के बारे में जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा सबसे अधिक  होती है.


जब युवाओं को  सही तरीके से सेक्स की शिक्षा नहीं मिल पति   तो ग़लत रास्तों से ,अश्‍लील साहित्य इत्यादि से इसको सीखने की कोशिश करता  है. इस क्रम में कुछ बच्चे मनोविकृति के शिकार हो जाते हैं.मनोविकार से ग्रसित बच्चे बाद में जाकर बलात्कार जैसे क्रूर व घिनौने जुर्म को अंजाम देते हैं.
आज के युवाओं की बातचीत मैं गाली या अपशब्द के आदान-प्रदान के दरम्यान पूरे कामसूत्र की झांकी आपको मिल सकती है.परन्तु उस कामसूत्र में मनोविकृति ज्यादा होती है. ऐसा युवा जब बड़ा हो कर पैसा और ताक़त पा जाता है या माता पिता के पैसे की शान दिखाता  है तो सबसे पहले उसका  निशाना महिलाएं ही हुआ करती हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि तकरीबन 3 से 5 फीसदी लोगों में सेक्स नशा की तरह होता है.ऐसे लोगों को सेक्सोहॉलिक कहा जाता है. यह नशा शराब, जुआ या फिर ड्रग्स के माफिक होता है.
पश्चिमी देशों की तरह हमारे देश में खुलकर सेक्स पर परिचर्चा आयोजित नहीं की जाती है. विदेशों में स्त्री एवं पुरुष आपसी सहमति से सेक्स का आनंद लेते हैं. हम यहाँ पश्चिम की तरह खुलापन तो अपनाने लगे हैं लेकिन खुले रूप मैं एक दूसरे की मर्जी से सेक्स को अभी भी बुरा कहते  हैं. हम जिस समाज  मैं रहते हैं वहाँ बलात्कार के दोषिओं को बड़ी बड़ी सजा देने की बात की जाती है लेकिन उसी समाज मैं बलात्कार की शिकार युवती की शादी भी नहीं हो पाती. 


आम आदमी के मन में सेक्स के प्रति इतनी  समझ तो होनी ही चाहिए की  दोहरा चरित्र जीने की बजाए यौन जनित भावनाओं पर नियंत्रण रखने के लिए अपनी मानसिक क्षमता का विकास कर सके. 
आज आप के समाज मैं औरतों को आज़ादी के नाम पे उनके कपडे  उतारने की हिमायत  करने वाले बहुत हैं और यह वही हैं जिन्होंने महिला को भोग की वस्तु बना रखा है और ऐसे ही बहका कर  उनका शोषण करते हैं और वैश्यावृति जैसे दल दल मैं धकेल देते हैं र ध्यान रहे इस काम मैं बहुत से महिलाएं भी इन मर्दों का साथ देती हैं. आज़ादी नाम है समाज मैं इज्ज़त से जीने का ना कि अर्धनग्न घूमने का . यह मेरा शरीर है मैं जैसा चाहूँ  वैसा रखूँ ,जो चाहूँ वो पहनू ,ना मर्द के लिए सही है और ना औरत के लिए, क्यों कि हम जंगलों मैं रहने वाले कम अक्ल जानवर नहीं  समाज मैं रहने वाले अक्ल मंद इंसान हैं.


हम भी यदि सेक्स के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश करें, सही उम्र मैं सेक्स की  शिक्षा घर से ही अपने बच्चों को दें ,उन्हें यौन जनित भावनाओं पर नियंत्रण रखना सिखाएं  और आवश्यकता अनुसार सही उम्र मैं उन्हें सेक्स के लिए सही साथी दिला सकें  तो शायद सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं.
और बलात्कार जैसा जुर्म साबित हो जाने पे कानून मैं उसकी सख्त से सख्त सजा के  प्रावधान को लागु करने की आवश्यकता भी है. लेकिन यह भी सत्य है की बलात्कार किसने किया यह साबित करना आसान नहीं और सुबूतों के आभाव मैं अधिकतर बलात्कारी छूट जाता है .
इसलिए उन बातों पे अधिक ध्यान  दिया जाए जिनसे बलात्कार , औरत के  शोषण और उसपे हो रहे ज़ुल्म को रोका जा सके.

महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं का एक कारण महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का इसमें सहयोग है. 

कच्चा डॉक्टर नहीं बताता एंटी बायटिक्स के संग प्रो बायटिक्स का फंडा

28 साल के निमेश के कान में इन्फेक्शन हुआ था। डॉक्टर नेउन्हंे तीन तरह की दवाइयां लिखीं। जैसे ही उन्होंने दवा लेनीशुरू की उन्हें लूज मोशन हो गया। एक हफ्ते तक दवा का डोजलेने के बाद उन्हें दोबारा डॉक्टर के पास जाना था। वजहसमझ न आने की हालत में इस बीच वह डायरिया ठीक करनेके लिए कई उपाय करते रहे मगर कोई फायदा नहीं हुआ।दवा की डोज पूरी होने तक डायरिया के चलते वह काफी बीमार हो गए। जब वह ईएनटी स्पेशलिस्ट के पासदोबारा गए तो पता लगा कि उन्हें प्रोबायटिक्स देकर बड़ी आसानी से इस हालत में पहुंचने से बचाया जा सकताथा। इस तरह की दिक्कतों के शिकार अकेले निमेश नहीं उनके जैसे लाखों मरीज होते हैं। मगर जानकारी केअभाव में सही उपाय नहीं अपना पाते। 

डॉक्टरों का कहना है कि इन्फेक्शन दर्द वाले लक्षणों और यहां तक कि मौत के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया कोखत्म करने में एंटीबायटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इससे रोजाना लाखों लोगों को फायदा हो रहा हैमगर एंटीबायटिक के कुछ साइड इफेक्ट भी होते हैं। पेट की समस्या इनमें आम है। एंटीबायटिक्स के साथप्रोबायटिक्स लेने से फायदा हो सकता है। 

गाइडलाइंस की जरूरत 

फोर्टिस वसंतकुंज के सीनियर मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ अनूप मिश्रा कहते हैं एंटीबायटिक्स के संबंध में तोगाइडलाइंस हैं मगर प्रोबायटिक्स के संबंध में अभी कोई गाइडलाइंस नहीं बनी हैं। ऐसे में आमतौर पर डॉक्टरइसे प्रेस्क्राइब नहीं करते हैं। उनका कहना है चूंकि प्रोबायटिक्स करीब 4-5 साल पहले पेश हुई हैं ऐसे मेंइसका कितना और किस तरह का फायदा होता है इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। ऐसे में कम समय के लिएदी जाने वाली एंटीबायटिक्स के साथ इन्हें पे्रस्क्राइब करना जरूरी नहीं होता। मगर लंबे समय तक चलने वालीऔर ऐसी एंटीबायटिक्स जिनसे साइड इफेक्ट होना निश्चित है के साथ प्रोबायटिक्स दिया जाना चाहिए। 


डायरिया या कब्ज से बचाव 

प्रोबायटिक्स में एंटीबायटिक्स के साइड इफेक्ट्स से लड़ने वाले अलग अलग तरह के बैक्टीरिया होते हैं औरइस तरह के बैक्टीरिया दही में भी होते हैं। ऐसे में अगर आप अपने खाने में नियमित रूप से दही का इस्तेमालकरते हैं काफी फायदा हो सकता है। सीनियर गायनेकॉलजिस्ट डॉ अर्चना धवन बजाज कहती हैं मैं हमेशाएंटीबायटिक्स के साथ प्रोबायटिक्स लेने की सलाह देती हूं क्योंकि ऐसा न करने पर अक्सर मरीज डायरिया याकब्ज का गलत इलाज करने लगते हैं। ऐसी हालत में उन्हें ज्यादा प्रोबायटिक्स की जरूरत पड़ती है। 


बने रहें गुड बैक्टीरिया 

प्राइमस सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल के लैप्रोस्कोपिक एंड बेरियाट्रिक सर्जन डॉ अतुल पीटर्स कहते हैं किप्रोबायटिक्स में आंतों के लिए फायदेमंद बैक्टीरिया होते हैं। एंटीबायटिक्स लेने से कई बार मरीज के शरीर केअच्छे बैक्टीरिया भी मर जाते हैं। ये बैक्टीरिया आंतों में कई तरह के विटामिन बनाने का काम करते हैं।प्रोबायटिक्स एंटीबायटिक्स से खत्म हो नष्ट हो चुके इन बैक्टीरिया की आबादी बढ़ाने में मदद करता है। ऐसेमामलों में प्रोबायटिक्स को आंतों के लिए फायदेमंद कई तरह के विटामिन कैप्सूल से बेहतर माना जाता है।हालांकि प्रोबायटिक्स के संबंध में अभी और रिसर्च और गाइडलाइंस तैयार करने की जरूरत है। 

Saturday, May 11, 2013

गांधी का ब्रह्मचर्य और स्‍त्री प्रसंग



नेहरू के विभिन्‍न स्‍त्रियों से सम्‍बन्‍धो की चर्चा तो हमेशा होती ही रही है किन्‍तु अभी गांधी जी के स्‍त्रियों के के सम्‍बन्‍ध पर मौन प्रश्‍न विद्यमान है। गांधी जी ने अपनी पुस्‍तक सत्‍य के प्रयोग में अपने बारे में जो कुछ लिखा है उसमें कितना सही है, यह गांधी से अच्‍छा कौन जान सकता है? गांधी जी के जीवन के सम्‍बन्‍ध में अभी तक इतना ही जाना जा सका है जितना कि नवजीवन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। आज गांधी की वास्‍तविक स्थिति हम अनभिज्ञ है, बहुत से बातों में गांधी को समझ पाना कठिन है। गांधी की नज़रों में गीता माता है, पर वे गीता के हर श्‍लोक से बंधे नही थे, वह हिन्‍दू धर्म को तो मानते थे किन्‍तु मंदिर जाना अपने लिये गलत मानते थे, वे निहायत आस्तिक थे किन्‍तु भगवान सत्‍य से बड़ा या भिन्‍न हो सकता है उन्‍हे इसका सदेह था ठीक इसी प्रकार ब्रह्मचर्य उनका आदर्श रहा, लेकिन औरत के साथ सोना और उलंग होकर सोना उनके लिये स्‍वाभाविक बन गया था।

गांधी के सत्‍य के प्रयोगों में ब्रह्मचर्य भी प्रयोग जैसा ही था, विद्वानों का कथन है कि गांधी जी अपने इस प्रयोग को लेकर अपने कई सहयोगियों से चर्चा और पत्रचार द्वारा बहस भी की। एक पुस्‍तक में एक घटना का उल्‍लेख किया जाता है - पद्मजा नायडू (सरोजनी नाडयू की पुत्री) ने लिखा है कि गांधी जी उन्‍हे अकसर चिट्ठी लिखा करते थे ( पता नही गांधी जी और कितनी औरतो को चिट्ठी लिखा करते थे :-) ), एक हफ्ते में पद्मजा के पास गांधी जी की दो तीन चिट्ठियाँ आती है, पद्मजा की बहन लीला मणि कहती है कि बुड्डा (माफ करे, गांधी के लिये यही शब्‍द वहाँ लिखा था, एक बार मैने बुड्डे के लिये बुड्डा शब्‍द प्रयोग किया था तो कुछ लोग भड़क गये थे, बुड्डे को बुड्डा क्‍यो बोला) जरूर तुमसे प्‍यार करता होगा, नही तो ऐसी व्‍यस्‍ता में तुमको चिट्ठी लिखने का समय कैसे निकल लेता है ?

लीला मंणि की कही गई बातो को पद्मजा गांधी जी को लिख भेजती है, कि लीलामणि ऐसा कहती है। गांधी जी का उत्‍तर आता है। '' लीलामणि सही ही कहती है, मै तुमसे प्रेम करता हूँ। लीलामणि को प्रेम का अनुभव नही, जो प्रेम करता है उसे समय मिल ही जाता है।'' पद्मजा नायडू की बात से पता चलता है कि गांधी जी की औरतो के प्रति तीव्र आसक्ति थी, यौन सम्‍बन्‍धो के बारे में वे ज्‍यादा सचेत थे, अपनी आसक्ति के अनुभव के कारण उन्हे पाप समझने लगे। पाप की चेतना से ब्रह्मचर्य के प्रयो तक उनमें एक उर्ध्‍वमुखी विकास है । इस सारे प्रयोगो के दौरान वे औरत से युक्‍त रहे मुक्‍त नही। गांधी का पुरूषत्‍व अपरिमेय था, वे स्‍वयं औरत, हिजड़ा और माँ बनने को तैयार थे, यह उनकी तीवता का ही लक्षण था। इसी तीव्रता के कारण गांधी अपने यौन सम्‍बन्‍धो बहुतआयामी बनाने की सृजनशीलता गांधी में थी। वो मनु गांधी की माँ भी बने और उसके साथ सोये भी।

गांधी सत्‍य के प्रयोग के लिये जाने जाते है। उनके प्रयोग के परिणाम आये भी आये होगा और बुरे भी। हमेशा प्रयोगों के लिये कामजोरो का ही शोषण होता है- इसी क्रम में चूहा, मेढ़क आदि मारे जाते है। गांधी ने अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग जो अन्‍यों पर किये होगे वे कौन है और उन पर क्‍या बीती होगी, यह प्रश्‍न आज भी अनुत्‍तरित है। गांधी की दया सिर्फ स्‍वयं तक सीमित रही, वह भिखरियों से नफरत करके है, उनके प्रति उनकी तनिक भी सहनुभूति नही दिखती है ये बो गांधी जिसे भारत के तत्‍कालीन परिस्थित से अच्‍छा ज्ञान रहा होगा। गांधी के इस रूप से गांधी से क्रर इस दुनिया में कौन हो सकता है, जो पुरूष हो कर माँ बनना चाहता है।

इस लेख के सम्‍पूर्ण तथ्‍य राज कमल प्रकाशन से प्रकाशित किशन पटनायक की पुस्‍तक विकल्‍पहीन नही है दुनिया के पृष्‍ठ संख्‍या 101 में गांधी और स्‍त्री शीर्षक के लेख से लिये गये है।

Friday, May 10, 2013

राजीव भाई

जिंदगी भर स्वास्थ्य रहने के कुछ देशी नुस्खे अधिक विस्तार सैजानने के लिये राजीव भाई को सुनें और देश को विदेशी गुलामी से बचाऐ
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