Posted: 06 May 2012 10:08 PM PDT
टीप : यह खराब यूएसबी ड्राइव से डाटा रिकवरी हेतु टिप नहीं है.
कई बार के इस्तेमाल या कंप्यूटिंग गड़बड़ी की वजह से कभी कभी आपका फ्लैश यूएसबी ड्राइव या एसडी/मिनी एसडी कार्ड खराब हो जाता है और कुछ का कुछ मेमोरी बताता है. उदाहरण के लिए, मेरा 8 जीबी पेन ड्राइव मात्र 94 मेबा जगह बता रहा था और विंडोज में फार्मेट करने पर भी जगह इतनी ही बता रहा था. इसका बाकी का 7.10 जीबी जगह जाहिर है, कहीं छुप गया था. इस तरह की समस्या आमतौर पर तब भी आती है जब आप अपने पेन ड्राइव में बूटेबल लिनक्स तंत्र इंस्टाल करते हैं. तो अपने पेन ड्राइव के पूरे 8 जीबी स्पेस को पाने के लिए सहायता हेतु मैंने गूगल में कुछ खोजबीन की और यह आसान सा तरीका पाया - command promt चलाएं टाइप करें diskpart enter दबाएं टाइप करें list disk enter दबाएं अपने यूएसबी ड्राइव का नंबर ध्यान से देखें और नोट करें. ध्यान दें कि यदि आपने गलत नंबर नोट किया तो आपके उस संबंधित ड्राइव का डाटा उड़ सकता है. टाइप करें select disk X enter दबाएं (X आपके यूएसबी पेन ड्राइव का नंबर होगा जिसे आपने नोट किया है) टाइप करें clean enter दबाएं टाइप करें create partition primary enter दबाएं बस हो गया. अब विंडोज एक्सप्लोरर में जाएं, यूएसबी पेन ड्राइव को सलेक्ट करें और दायां क्लिक कर फ़ॉर्मेट विकल्प चुनें. अब आपका ड्राइव वापस अपने पूरे मेमोरी के साथ वापस आ गया है! -- वैकल्पिक टिप - लिनक्स तंत्र का प्रयोग कर डिस्क को फ़ॉर्मेट करें या जीपार्टेड नामक औजार का प्रयोग कर डिस्क रिकवर करें. टीप : यह खराब यूएसबी ड्राइव से डाटा रिकवरी हेतु टिप नहीं है. |
लिखिए अपनी भाषा में
आप यहाँ रोमन अक्षरों में हिंदी लिखिए वो अपने आप हिंदी फॉण्ट में बदल जायेंगे,
पूरा लिखने के बाद आप यहाँ से कॉपी कर कमेन्ट बौक्स में पेस्ट कर दें...
Monday, August 12, 2013
खराब यूएसबी ड्राइव (या एसडी/मिनी एसडी कार्ड) को कैसे ठीक करें
श्रुतलेखन
Posted: 28 May 2012 10:30 PM PDT
हिंदी के एकमात्र व्यावसायिक और व्यावहारिक रूप से सफल स्पीच टू टैक्स्ट प्रोग्राम (हिंदी वार्ता से पाठ अनुप्रयोग) श्रुतलेखन - राजभाषा के बारे में सर्वप्रथम एक छोटी सी समीक्षा कथाकार सूरज प्रकाश ने 2008 में यहाँ लिखी थी. तब उक्त प्रोग्राम के आउटपुट की शुद्धता का प्रतिशत कोई 80 प्रतिशत था, जो कई मामलों में व्यावहारिक नहीं था. एक वर्कशॉप में अभी हाल ही में मेरी मुलाकात अहमदाबाद के श्री जवाहर कर्नावट से हुई. उन्होंने बताया कि श्रुतलेखन - राजभाषा का नया संस्करण कोई 90 प्रतिशत शुद्धता के साथ आउटपुट देता है. और वे तथा उनके बहुत से साथी इस प्रोग्राम का प्रयोग बहुतायत से कर रहे हैं. इस बात से उत्साहित होकर मैंने इस प्रोग्राम को खरीदने के लिए इंटरनेट में खोजबीन की तो निराशा हाथ लगी. कहीं कोई कड़ी नहीं, कोई लिंक नहीं और न ही उक्त उत्पाद को खरीदने बेचने के बारे में कुछ भी जानकारी या समीक्षा नहीं. अंततः श्री जवाहर कर्नावट ने सीडैक के श्री दीपक मोतीरमानी का ईमेल भेजा जो श्रुतलेखन की मार्केटिंग देखते हैं. यदि आपको यह सॉफ़्टवेयर चाहिए तो दीपक मोतीरमानी से deepakm@cdac.in पर संपर्क कर सकते हैं. यदि फोन से संपर्क करना चाहें तो उनके डेस्क का डायरेक्ट नंबर है - 020 - 25503396. दीपक ने मुझे श्रुतलेखन का एक ब्रोशर भी भेजा है. जो निम्न है: श्रुतलेखन-राजभाषा एक हिंदी स्पीकर-इनडिपेंडेंट हिंदी स्पीच रिकग्निशन सिस्टम है जो स्पीच (वाक्) टैक्नॉलाजी के क्षेत्र में मील का पत्थर है। स्पीच रिकग्निशन टैक्नॉलाजी की वज़ह से मशीनों के लिए मानव भाषा समझना साध्य हो गया है और यह हिंदी में आउटपुट देता है। श्रुतलेखन-राजभाषा को मंत्र-राजभाषा (मशीन साधित अनुवाद) सिस्टम के एक अंश के रूप में एकीकृत किया गया है। यह बोली गई भाषा को डिज़िटाईज़ करके इनपुट के रूप में लेता हैं और आउटपुट एक स्ट्रीम ऑफ़ टेक्स्ट के रूप में प्राप्त होता है। लैंग्वेज मॉड्यूल में मौजूद व्याकरण की सहायता से रिकग्नाईज़र स्पीच रिकग्निशन को बेहतर बनाता है। लैंग्वेज मॉड्यूल में शब्दावली और वाक्य संरचना स्टोर किया गया है। ब्रोशर के मुताबिक सॉफ़्टवेयर में उपलब्ध सुविधाएं बेहद काम की प्रतीत होती हैं और वास्तविक उपयोगकर्ताओं के मुताबिक प्रामिसिंग लगता है. मैंने इसे खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सॉफ़्टवेयर प्राप्त होते ही इसकी विस्तृत समीक्षा इन्हीं पृष्ठों पर जल्द ही प्रस्तुत करूंगा. |
Sunday, August 11, 2013
ट्री ऑफ लाइफ
डार्विन ने अपनी किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज में जीवन वृक्ष- ‘ट्री ऑफ लाइफ’ से संबंधित विस्तृत जानकारी पेश की. उन्हें विश्वास था कि समय के साथ जीवों के विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया को ट्री ऑफ लाइफ द्वारा समझाया जा सकता है. डार्विन के बाद से अब तक इस लाइफ ट्री को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिकों की कोशिश एक ऐसे वृक्ष का निर्माण करना है, जिसकी सारी कड़ी आपस में जुड़ी हुई हो. अब एक नयी परियोजना के तहत डार्विन के इस ट्री को पूरा करने की एक बड़ी कवायद शुरू की गयी है. क्या है डार्विन का ट्री ऑफ लाइफ और क्या है यह परियोजना बता रहा है आज का नॉलेज..
वर्ष 1837 में चार्ल्स डार्विन ने एक नोटबुक खोला और उसमें एक सामान्य पेड़ की तसवीर बनायी. इस पेड़ में कुछ शाखाएं थीं. प्रत्येक शाखा को अंग्रेजी के एक अक्षर से अंकित किया गया था और वह एक प्रजाति को दर्शाता था. इस चित्र के जरिए उन्होंने अपनी उस कल्पना को उकेरा जिसके मुताबिक प्रजातियां एक-दूसरे से संबंधित हैं, जुड़ी हुई हैं. यानी प्रजातियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है. दिलचस्प यह है कि इस पóो के ऊपरी हिस्से में डार्विन ने लिखा- -आइ थिंक’ यानी ‘मैं सोचता हूं.’ अगर गौर कीजिये तो यह कल्पना और उसके ऊपर लिखे शब्द अपने आप में एक ब.डे ऐतिहासिक तथ्य को बयां कर रहे थे. यहां से आधुनिकता का आगाज हो रहा था. खैर उस तथ्य में गये बगैर यहां सिर्फ यह समझा जाता हैकि इस बिंदु से ही डार्विन के विकासवादी सिद्धांत का आगाज होता है. डार्विन के इस विकासवादी सिद्धांत के मुताबिक, इंसान का विकास एक कॉमन पूर्वज से हुआ.
ट्री ऑफ लाइफ
डार्विन ने अपनी किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज में जीवन वृक्ष- ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित विस्तृत जानकारी पेश की. उन्हें विश्वास था कि समय के साथ जीवों के अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने की प्राकृतिक प्रक्रिया को ट्री ऑफ लाइफ द्वारा समझाया जा सकता है. डार्विन के बाद से अब तक इस लाइफ ट्री को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिकों की कोशिश एक ऐसे वृक्ष का निर्माण है, जिसकी सारी कड़ी आपस में जुड़ी हुई हो. काफी अरसे से वैज्ञानिक डीएनए, जीवाश्म और अन्य संकेतों का उपयोग करते हुए जीवों के विभित्र समूहों के बीच संबंध स्थापित करने का काम कर रहे हैं.
वे इसके जरिये जीवन वृक्ष का खाका बना रहे हैं, ताकि यह साबित किया जा सके कि सभी प्रजातियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है. इस तरह से जो वृक्ष बनता है वह काफी रोचक है. इसके एक सिरे पर अगर जानवर और फफूंद हैं तो दूसरे सिरे पर पेड़-पौधे. यह 20 लाख शाखाओं वाले एक वृक्ष की तरह है. जानकारों के मुताबिक, अगर प्रजातियों के बीच के गुमशुदा संबंध को स्थापित किया जा सके तो समुदायों की हमारी जानकारी काफी बेहतर हो जायेगी.
कल्पना ही रही है अभी तक
अभी हाल तक एक संपूर्ण जीवन-वृक्ष (ट्री ऑफ लाइफ) सिर्फ कल्पनाओं की ही बात रही है. प्रजातियां किस तरह एक-दूसरे से संबंधित हैं इसे बतलाने के लिए वैज्ञानिक हर उस संभव संबंध की पड़ताल करते हैं, जिससे प्रजातियां जुड़ी हो सकती हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में एक प्रजाति के जुड़ने से जीवन वृक्ष की संख्या में विस्फोट हो जाता है.
वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित किया है, जो प्रजातियों के बीच संबंधों की पहचान करता है, वह भी उनकी क्रम व्यवस्था को बिना बदले. इस तरह के कंप्यूटर अब लाखों प्रजातियों का विश्लेषण एक समय में ही कर सकते हैं. हालांकि, अभी तक इन अध्ययनों से जीवन वृक्ष के बहुत ही कम भाग के बारे में पता चल पाया है. और किसी ने भी इन नतीजों का एक-साथ अध्ययन करने की कोशिश नहीं की है. पिछले साल नेशनल साइंस फाउंडेशन की बैठक में एकल जीवन वृक्ष की योजना की चर्चा की गयी. पिछले महीने 17 मई को अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन ने इस परियोजना पर काम करने के लिए तीन वर्षों के लिए 57 लाख डॉलर की राशि मंजूर की.
परियोजना का लक्ष्य
इस परियोजना (ओपन ट्री ऑफ लाइफ)का पहला लक्ष्य अगस्त 2013 तक एक मसौदा तैयार करना है. इसके लिए की सामग्री उपलब्ध कराने के लिए वैज्ञानिक ऑनलाइन रूप से आर्काइव किये गये लाखों ऐसे छोटे-छोटे वृक्ष इकट्ठा करेंगे. इसके बाद इन छोटे वृक्ष को एक ब.डे वृक्ष से जोड़ा जायेगा. ये वृक्ष पृथ्वी पर मौजूद सभी ज्ञात प्रजातियों के छोटे से हिस्से को दर्शायेगा. बाकी को लिनियन सिस्टम (जैविक वर्गीकरण का एक प्रकार) में वर्गीकृत किया जायेगा.
इस सिस्टम में प्रजाति अपने वंश को निर्दिष्ट करते हैं. यह वंश उसी प्रजाति के परिवार और फिर अपने आगे के परिवार को बतलाता है. यह क्रम इसी तरह चलता रहता है. इस सूचना का उपयोग उसे जीवन वृक्ष पर रखने में भी किया जायेगा. एक वंशकी सभी प्रजाति अवरोही क्रम में समान पूर्वज से जु.डे होंगे. लीनियन सिस्टम के माध्यम से प्रजातियों के बीच सही संबंधों का एक खाका खींचा जायेगा. उसके बाद, जीवन वृक्ष को अधिक सटीक और सही बनाने के लिए पूरे समुदाय को सूचीबद्ध किया जायेगा. वैज्ञानिक एक इंटरनेट पोर्टल स्थापित करेंगे, जहां नये अध्ययन को अपलोड किया जा सकेगा और इसका उपयोग पूरे जीवन वृक्ष को सुधारने में किया जायेगा.
कई लिहाज से है महत्वपूर्ण
हालांकि, विकासवादी जीववैज्ञानिकों के लिए काफी अरसे से यह एक महत्वपूर्ण सवाल रहा है कि कैसे विभित्र वंशावलियों में विकास अलग-अलग गति से होता है. जानकारों का कहना है कि इस जीवन वृक्ष की मदद से इसका भी पता लगाया जा सकता है.
इस जीवन वृक्ष से यह पता लगाना भी संभव हो सकता है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से अतीत में जीवों के विनाश की घटना घटी. साथ ही इसकी मदद से भविष्य होने वाली में इस तरह की घटनाओं का अनुमान भी लगाया जा सकता है. कई जानकारों का मानना है कि ओपन ट्री ऑफ लाइफ की मदद से वैज्ञानिक और भी कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब तलाश सकते हैं. ओपन ट्री ऑफ लाइफ वैज्ञानिकों को नयी दवाओं की खोज में भी मददगार साबित हो सकता है. वैज्ञानिक संक्रामक जीवाणुओं के इलाज के लिए ऐसे फफूंद की खोज कर रहे हैं, जो एंटीबायोटिक बनाता है और संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रभावशाली होता है. उन फफूंदों के करीबी प्रजातियों की मदद से और भी अधिक प्रभावी दवाएं बनायी जा सकती है.
ट्री ऑफ लाइफ
डार्विन ने अपनी किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज में जीवन वृक्ष- ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित विस्तृत जानकारी पेश की. उन्हें विश्वास था कि समय के साथ जीवों के अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने की प्राकृतिक प्रक्रिया को ट्री ऑफ लाइफ द्वारा समझाया जा सकता है. डार्विन के बाद से अब तक इस लाइफ ट्री को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिकों की कोशिश एक ऐसे वृक्ष का निर्माण है, जिसकी सारी कड़ी आपस में जुड़ी हुई हो. काफी अरसे से वैज्ञानिक डीएनए, जीवाश्म और अन्य संकेतों का उपयोग करते हुए जीवों के विभित्र समूहों के बीच संबंध स्थापित करने का काम कर रहे हैं.
वे इसके जरिये जीवन वृक्ष का खाका बना रहे हैं, ताकि यह साबित किया जा सके कि सभी प्रजातियों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है. इस तरह से जो वृक्ष बनता है वह काफी रोचक है. इसके एक सिरे पर अगर जानवर और फफूंद हैं तो दूसरे सिरे पर पेड़-पौधे. यह 20 लाख शाखाओं वाले एक वृक्ष की तरह है. जानकारों के मुताबिक, अगर प्रजातियों के बीच के गुमशुदा संबंध को स्थापित किया जा सके तो समुदायों की हमारी जानकारी काफी बेहतर हो जायेगी.
कल्पना ही रही है अभी तक
अभी हाल तक एक संपूर्ण जीवन-वृक्ष (ट्री ऑफ लाइफ) सिर्फ कल्पनाओं की ही बात रही है. प्रजातियां किस तरह एक-दूसरे से संबंधित हैं इसे बतलाने के लिए वैज्ञानिक हर उस संभव संबंध की पड़ताल करते हैं, जिससे प्रजातियां जुड़ी हो सकती हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में एक प्रजाति के जुड़ने से जीवन वृक्ष की संख्या में विस्फोट हो जाता है.
वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित किया है, जो प्रजातियों के बीच संबंधों की पहचान करता है, वह भी उनकी क्रम व्यवस्था को बिना बदले. इस तरह के कंप्यूटर अब लाखों प्रजातियों का विश्लेषण एक समय में ही कर सकते हैं. हालांकि, अभी तक इन अध्ययनों से जीवन वृक्ष के बहुत ही कम भाग के बारे में पता चल पाया है. और किसी ने भी इन नतीजों का एक-साथ अध्ययन करने की कोशिश नहीं की है. पिछले साल नेशनल साइंस फाउंडेशन की बैठक में एकल जीवन वृक्ष की योजना की चर्चा की गयी. पिछले महीने 17 मई को अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन ने इस परियोजना पर काम करने के लिए तीन वर्षों के लिए 57 लाख डॉलर की राशि मंजूर की.
परियोजना का लक्ष्य
इस परियोजना (ओपन ट्री ऑफ लाइफ)का पहला लक्ष्य अगस्त 2013 तक एक मसौदा तैयार करना है. इसके लिए की सामग्री उपलब्ध कराने के लिए वैज्ञानिक ऑनलाइन रूप से आर्काइव किये गये लाखों ऐसे छोटे-छोटे वृक्ष इकट्ठा करेंगे. इसके बाद इन छोटे वृक्ष को एक ब.डे वृक्ष से जोड़ा जायेगा. ये वृक्ष पृथ्वी पर मौजूद सभी ज्ञात प्रजातियों के छोटे से हिस्से को दर्शायेगा. बाकी को लिनियन सिस्टम (जैविक वर्गीकरण का एक प्रकार) में वर्गीकृत किया जायेगा.
इस सिस्टम में प्रजाति अपने वंश को निर्दिष्ट करते हैं. यह वंश उसी प्रजाति के परिवार और फिर अपने आगे के परिवार को बतलाता है. यह क्रम इसी तरह चलता रहता है. इस सूचना का उपयोग उसे जीवन वृक्ष पर रखने में भी किया जायेगा. एक वंशकी सभी प्रजाति अवरोही क्रम में समान पूर्वज से जु.डे होंगे. लीनियन सिस्टम के माध्यम से प्रजातियों के बीच सही संबंधों का एक खाका खींचा जायेगा. उसके बाद, जीवन वृक्ष को अधिक सटीक और सही बनाने के लिए पूरे समुदाय को सूचीबद्ध किया जायेगा. वैज्ञानिक एक इंटरनेट पोर्टल स्थापित करेंगे, जहां नये अध्ययन को अपलोड किया जा सकेगा और इसका उपयोग पूरे जीवन वृक्ष को सुधारने में किया जायेगा.
कई लिहाज से है महत्वपूर्ण
हालांकि, विकासवादी जीववैज्ञानिकों के लिए काफी अरसे से यह एक महत्वपूर्ण सवाल रहा है कि कैसे विभित्र वंशावलियों में विकास अलग-अलग गति से होता है. जानकारों का कहना है कि इस जीवन वृक्ष की मदद से इसका भी पता लगाया जा सकता है.
इस जीवन वृक्ष से यह पता लगाना भी संभव हो सकता है कि किस तरह जलवायु परिवर्तन की वजह से अतीत में जीवों के विनाश की घटना घटी. साथ ही इसकी मदद से भविष्य होने वाली में इस तरह की घटनाओं का अनुमान भी लगाया जा सकता है. कई जानकारों का मानना है कि ओपन ट्री ऑफ लाइफ की मदद से वैज्ञानिक और भी कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब तलाश सकते हैं. ओपन ट्री ऑफ लाइफ वैज्ञानिकों को नयी दवाओं की खोज में भी मददगार साबित हो सकता है. वैज्ञानिक संक्रामक जीवाणुओं के इलाज के लिए ऐसे फफूंद की खोज कर रहे हैं, जो एंटीबायोटिक बनाता है और संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रभावशाली होता है. उन फफूंदों के करीबी प्रजातियों की मदद से और भी अधिक प्रभावी दवाएं बनायी जा सकती है.
राह में चुनौती नहीं है कम
प्रत्येक वर्ष वैज्ञानिक 17,000 नयी प्रजातियों का विवरण प्रकाशित करते हैं. अभी तक कितनी प्रजातियों की खोज नहीं हुई है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पिछले साल ही वैज्ञानिकों की एक टीम ने अनुमान लगाया था कि कुल प्रजातियों की संख्या 87 लाखके आसपास है. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि यह इससे दस गुना से भी अधिक हो सकती है. जब वैज्ञानिक किसी नयी प्रजाति का विवरण प्रकाशित करते हैं तो वे इसकी करीबी प्रजातियों का पता लगाने के लिए इसकी तुलना ज्ञात प्रजातियों से करते हैं. वैज्ञानिक इस नयी सूचना को ओपन ट्री ऑफ लाइफ में भी अपलोड करेंगे. सबसे अधिक परिचित प्रजातियों (जीव और वनस्पति) को इस वृक्ष में बहुत कम जगह ही दी जायेगी. जानकारों का कहना है कि ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता सूक्ष्मजीवों में है. इसके अलावा सूक्ष्मजीव एक अलग तरह की चुनौती पेशकरते हैं. जीवन वृक्ष यह दर्शाता है कि किस तरह जीवों का जीन उनके वंशजों में आगे बढ.ता है. लेकिन, यह बात भी है कि ये जीव एक-दूसरे में भी जीन स्थांतरित करते हैं. इन्हें शाखा में शामिल किया जा सकता है, जिन्हें लाखों वर्षों के विकास के बाद वर्गीकृत किया गया है.
प्रत्येक वर्ष वैज्ञानिक 17,000 नयी प्रजातियों का विवरण प्रकाशित करते हैं. अभी तक कितनी प्रजातियों की खोज नहीं हुई है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पिछले साल ही वैज्ञानिकों की एक टीम ने अनुमान लगाया था कि कुल प्रजातियों की संख्या 87 लाखके आसपास है. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि यह इससे दस गुना से भी अधिक हो सकती है. जब वैज्ञानिक किसी नयी प्रजाति का विवरण प्रकाशित करते हैं तो वे इसकी करीबी प्रजातियों का पता लगाने के लिए इसकी तुलना ज्ञात प्रजातियों से करते हैं. वैज्ञानिक इस नयी सूचना को ओपन ट्री ऑफ लाइफ में भी अपलोड करेंगे. सबसे अधिक परिचित प्रजातियों (जीव और वनस्पति) को इस वृक्ष में बहुत कम जगह ही दी जायेगी. जानकारों का कहना है कि ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता सूक्ष्मजीवों में है. इसके अलावा सूक्ष्मजीव एक अलग तरह की चुनौती पेशकरते हैं. जीवन वृक्ष यह दर्शाता है कि किस तरह जीवों का जीन उनके वंशजों में आगे बढ.ता है. लेकिन, यह बात भी है कि ये जीव एक-दूसरे में भी जीन स्थांतरित करते हैं. इन्हें शाखा में शामिल किया जा सकता है, जिन्हें लाखों वर्षों के विकास के बाद वर्गीकृत किया गया है.
डार्विन के ट्री पर सवाल
वैज्ञानिक डार्विन के ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित सिद्धांत पर सवाल उठाते रहे हैं. उनका मानना रहा है कि डार्विन का ट्री ऑफ लाइफ गलत और भ्रामक है. उनके मुताबिक, यह सिद्धांत भ्रामक इसलिए है, क्योंकि जीवों और उनके पूर्वजों का अध्ययन भी अधूरा है. साथ ही कुछ सीमित जानकारियों के आधार पर विकास के इस सिद्धांत की व्याख्या करना काफी जटिल है. हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1953 में डीएनए की खोज (इसके खोजकर्ताओं का मानना था कि डार्विन के ट्री को साबित करने में यह मददगार साबित होगा) ने इस दिशा में नया पहलू सामने लाया. लेकिन, कुछ ऐसे शोध सामने आये जिसने जटिल स्थिति पैदा की, खासकर जीवाणुओं और एकल कोशिका वाले जीवों से संबंधित शोध ने. अब नये शोध से इन सवालों का जवाब दिया जा सकेगा.
वैज्ञानिक डार्विन के ट्री ऑफ लाइफ से संबंधित सिद्धांत पर सवाल उठाते रहे हैं. उनका मानना रहा है कि डार्विन का ट्री ऑफ लाइफ गलत और भ्रामक है. उनके मुताबिक, यह सिद्धांत भ्रामक इसलिए है, क्योंकि जीवों और उनके पूर्वजों का अध्ययन भी अधूरा है. साथ ही कुछ सीमित जानकारियों के आधार पर विकास के इस सिद्धांत की व्याख्या करना काफी जटिल है. हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक, 1953 में डीएनए की खोज (इसके खोजकर्ताओं का मानना था कि डार्विन के ट्री को साबित करने में यह मददगार साबित होगा) ने इस दिशा में नया पहलू सामने लाया. लेकिन, कुछ ऐसे शोध सामने आये जिसने जटिल स्थिति पैदा की, खासकर जीवाणुओं और एकल कोशिका वाले जीवों से संबंधित शोध ने. अब नये शोध से इन सवालों का जवाब दिया जा सकेगा.
1837 में डार्विन ने ट्री ऑफ लाइफका खाका बनाया था.
1859 में ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज किताब आयी.
(ब्रिस्बेन टाइम्स से साभार)▪
(ब्रिस्बेन टाइम्स से साभार)▪
Health is Wealth
Health - Very Very Important Tips
Answer the phone by LEFT ear .
Do not drink coffee TWICE a day.
Do not take pills with COOL water .
Do not have HUGE meals after 5pm.
Reduce the amount of OILY food you consume.
Drink more WATER in the morning, less at night.
Keep your distance from hand phone CHARGERS .
Do not use headphones/earphone for LONG period of time.
Best sleeping time is from 10pm at night to 6am in the morning.
Do not lie down immediately after taking medicine before sleeping.
When battery is down to the LAST grid/bar, do not answer the phone as the radiation is 1000 times.
Quite interesting!
Keep Walking.....
Jus to check this out......
The Organs of your body have their sensory touches at the bottom of your foot, if you massage these points you will find relief from aches and pains as you can see the heart is on the left foot.
Typically they are shown as points and arrows to show which organ it connects to.
It is indeed correct since the nerves connected to these organs terminate here.
This is covered in great details in Acupressure studies or textbooks.
God created our body so well that he thought of even this. He made us walk so that we will always be pressing these pressure points and thus keeping these organs activated at all times.
So, keep walking...
Answer the phone by LEFT ear .
Do not drink coffee TWICE a day.
Do not take pills with COOL water .
Do not have HUGE meals after 5pm.
Reduce the amount of OILY food you consume.
Drink more WATER in the morning, less at night.
Keep your distance from hand phone CHARGERS .
Do not use headphones/earphone for LONG period of time.
Best sleeping time is from 10pm at night to 6am in the morning.
Do not lie down immediately after taking medicine before sleeping.
When battery is down to the LAST grid/bar, do not answer the phone as the radiation is 1000 times.
Quite interesting!
Keep Walking.....
Jus to check this out......
The Organs of your body have their sensory touches at the bottom of your foot, if you massage these points you will find relief from aches and pains as you can see the heart is on the left foot.
Typically they are shown as points and arrows to show which organ it connects to.
It is indeed correct since the nerves connected to these organs terminate here.
This is covered in great details in Acupressure studies or textbooks.
God created our body so well that he thought of even this. He made us walk so that we will always be pressing these pressure points and thus keeping these organs activated at all times.
So, keep walking...
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