दुनियां में 50 से ज्यादा देश, अलग अलग समय पर गुलाम हुए हैं; लेकिन किसी भी देश की आजादी में इतने लोग अपना सब कुछ न्योछाबर करके शहीद नहीं हुए हैं। दुनियां में सबसे ज्यादा शहादत भारत की आजादी के के लिए हुई है । अमर शहीद तांत्या टोपे से अगर शुरुआत की जाये तो वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना चित्तूर चेन्नमा,वीरांगना झलकारी बाई,वीरांगना दुर्गावती , नाना साहब पेशवा ,सरदार भगत सिंह जैसे शहीदों को मिलाकर यदि सूचि बनायीं जाये तो "सात लाख बत्तीस हज़ार सात सौ अस्सी" नाम इसमें जुड़ जायेंगे। आपको शायद इस बात का अंदाजा है कि नहीं की इस देश की आजादी के लिए "सात लाख बत्तीस हज़ार सात सौ अस्सी" शहीदों की कुर्बानी हुई है।
और ये "सात लाख बत्तीस हज़ार सात सौ अस्सी" वो शहीद है जिनको अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढा दिया था; जैसे कि अमर शहीद तंत्याटोपे जिनको की यंहा शिवपुरी में फांसी चढ़ाई गयी थी । ऐसे ही अन्य शहीदों को भी फांसी पर चढ़ाया गया था । इसके आलावा अंग्रेजो की पुलिस के लाठियों के अत्याचार से,गोली बारी से, उनके खौफनाक तरीकों से लोगों की जाने ली गयी। आपको शायद मालूम हो या नही की बहुत से लोगों को टॉप के मुहँ पर बाँध कर शरीर के चीथड़े करदिये जाते थे । तो जिन शहीदों को तोप के मुंह से बाँधा गया, अंग्रजो की लाठियों के अत्याचार ने मार डाला या दुसरे तरीकोंसे जिनकी जाने ली गयी उनकी संख्या साढ़े चार करोड़ है । दुनिया के किसी देश की इतिहास में लोगो की इतनी बड़ी संख्या आजादी के लिए कुर्बान नहीं हुई । अंग्रेजों की नीतियों ने और अग्रेजों के अत्याचारों ने ऐसे कई बार मंजर उपस्थित किये थे । में आपको बंगाल के कुछ ऐसे उदाहरण देना चाहता हूँ ।
1857 में जब आजादी की क्रांति हुई तब पहली बार अंग्रेज पराजित हुए और भारत के क्रांतिकारियों की जीत हुई । इसके बाद 1 नवम्बर सन 1858 में अंग्रेजों ने दुबारा हमला किया था और बंगाल के आसपास उन सब इलाको को अंग्रेजो ने सील कर दिया था, जहाँ से क्रांति कारियों के दल निकला करते थे । बंगाल के एक महान क्रन्तिकारी थे अरुविन्दो घोष, विपिन चन्द्र पाल। ऐसे क्रांतिकारियों के दल बल जिन गाँव शहरों में रहा करते थे उन सभी जगहों को सील कर दिया गया था। ऐसे जगह पर खाने पिने की चीजों का मिलना बंद करा दिया था। भोजन समग्री जब महीनों महीनो तक उन जगहों पर नहीं पहुंची तो हजारों, लाखों लोगों ने भूख दे तड़प कर जान देदी । उनकी सख्या इस देश में साढ़े चार करोड़ के आसपास है। बहुत ही बड़ी क़ुरबानी हुई है । हम तो बड़ा अफ़सोस इस चीज का कर सकते है कि अगर हम क्रांतिकारियों की सूचि बनाने बैठे तो 10 -15 लोगों से ज्यादा के नाम याद नहीं आते हें। इस देश अच्छे खासे पढ़े लिखे और विद्वान लोगों के साथ में जब चर्चा करता हूँ और कहता हूँ कि चलो अपने इलाके के शहीदों की एक सूची बनाओ तो दो -चार से ज्यादा नाम ही याद नहीं आते। इतनो बड़ी विडम्मवना हैं, इतना अफ़सोस हैं की जिन लोगों ने हमे ये दिन दिखाया हम उन्हें भूल चुके हैं। हमें न तो उनके नाम,कुल,गोत्र और नहीं गाँव ही हमें मालुम हैं। और शायद इसी अँधा धुंदी में हमें ऐसे भी मंजर देखने को मिलते हैं जो किसी और देश में संभव नहीं हैं। इस देश के शीर्ष स्थानों पर ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने पल-पल इस इस देश के साथ गद्दारी की हैं, इसा देश के समाज से गद्दारी की हैं और इस राष्ट्र की अस्मिता से गद्दारी की है। जिन लोगों ने अपना सब कुछ इस देश के किये कुरबान कर दिए उनके आज की पीढ़ी चाय बेच कर अपने परिवार का गुजर करते हैं। ऐसे ही एक घटना में मैंने अपनी जिंदगी एक सबसे खराब दिन देखा ।
एक दिन में कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर उतरा क्यों की अक्सर में जाता रहता हूँ, लेकिन वो दिन में नहीं भूल पाया हूँ। कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद अचानक मेरे फ़ोन की घंटी बजी और में फ़ोन सुनने के लिए रुक गया । जहाँ में रुक था उसके सामने एक चाय की छोटी सी दूकान थी; जहाँ एक मा और बेटी ये चर्चा कर रहे थे कि हम गरीब क्यों हैं? कुछ लोग इस देश में बहुत अमीर क्यों है। तो माँ अपनी बेटी की समझाने की कोशिश कर रही थी। मेरे फ़ोन की वात पूरी होने पर मैं भी उनके पास चला गया। में ने जाने की कोशिश की आप जो चर्चा कर रहे वो तो इस देश के संसद को करनी चाहिए और अगर ये चर्चा करने मं सक्षम नहीं हैं तो इससे ज्यादा शरम की बात हमरे लिए क्या हो; सकती हैं। मेंने जिज्ञासावस उनका परिचय पूछ लिय तो मेरी आँख से आंसू निकल आये। दोनों ही अमर शहीद तांत्या टोपे के परिवार के लोग थे। उनको इस देश ने चाय बेचने के ककम पर लगा रखा है और जिन्होंने अंग्रेजों के साथ दोस्ती करके ,इस देश के साथ गद्दारी की थी ; उन्हें मुख्या मंत्री और प्रधान मंत्री के पदों पर बैठा रखा हैं। आप जानते हैं? कुछ परिवार ऐसे हैं जिन्हीने हर पल इस देश के क्रांतिकारियों के खिलाफ काम किया,देश की आजादी के खिलाफ काम किया ऐसे परिवार देश् की शासन व्यवस्था में हो। और जिन्होंने अपना सब कुछ देश के लिए अर्पण करदिया हो उनके परिवार के लोग इस देश में चाय बेचें । क्या यही दिन देखने के लिए देश आजाद हुआ हैं। हमारे देश में एक सिंधिया परिवार हैं जिन्हीने जिंदगी भर अंग्रेजों की मदद की और महारानी लक्ष्मीबाई को मरवाने मैं बहुत बड़ी भूमिका अदा की हैं। जिन्होंने अंग्रजों को अपनी फौज देकर क्रांतिकारियों पर हमले करवाए थे। उसी परवार के लोग आज इस देश में मुख्य मंत्री बने और अमर शहीद तंत्याटोपे के परिवार के लोग चाय बेचेंते फिरे; इस से बड़ा अपमान इस देश में कुछ नहीं हो सकता हैं।
इस देश में एक और परिवार है , पटियाला राजघराना जिन्होने अँग्रेज़ों की सबसे ज़्यादा मदद की, जिन्होने पंजाब राज्य को अँग्रेज़ों के हाथों लुटवाया उसी राज घराने के केप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब का मुख्यमंत्री वनाया जाय और अमर शहीद तंत्याटोपे के परिवार के लोग चाय बेचेंते फिरे ऐसा हिन्दुस्तान तो हमने कभी सपने में नही सोचा था. कभी हमारी कल्पना नही थी की ऐसा देश बनेगा, शहीदों ने भी अगर ये सोचा होता की ऐसा ही देश बनेगा तो शायद वो भी शहादत नही देते. उन्होने तो ये सोचकर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया की हम नही तो हमारी आने वाली पीडी इस देश में स्वतन्त्रता का मंज़र देखेगी, शहीदों के सपनों और आदर्शों का सम्मान होगा और उनके आदर्शों और सपनों का भारत बनेगा, लेकिन आज़ादी के 62 वर्षों के बाद भी ऐसा नही हो सका. जिस समाज मैं गद्दारों का सम्मान होने लगे, जिस संमाज में विश्वासघातियों को कुर्सियाँ मिलेने लगे, जिस समाज में गद्दारों और विश्वासघातियों को सत्ता शिखर पर पहुँचाने का काम होने लगे और शहीदों के परिवार को चाय बेचकर घर चलाना पड़े. उस देश की क्या दशा होगी, ये आप अपने दिमाग़ से सोचे और तय करें. मुझे तो बहुत खराब लगता हैं, बहुत क्रोध आता है इस देश की व्यवस्था पर. इतना महत्वपुराण इस देश की कुर्वानी का ये आधार और दूसरा आज़ादी मिलते ही इस देश के शहीदों को भूल जाना कैसे संभव हुआ ?
पूरा व्याख्यान सुनने के लिए लिंक पर जरुर क्लीक करें ।
https://www.youtube.com/#/watch?v=Uggf9Ha2otY
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भाई राजीव दिक्षित जी की जय ।