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Tuesday, August 28, 2012

ब्रह्मा जी का प्रकट होना

ब्रह्मा जी का प्रकट होना :- भगवान् नारायण के नाभि छिद्र से
एक दिव्य कमल उद्भूत हुआ,
जो अभी कली की अवस्था ही में था।
उसमें समस्त पदार्थ समूह संक्षिप्त
बीज रूप में समाया हुआ था। वह कमल
कली जल के मध्य से निकल कर बाहर आ गई। उसके तेज से जो प्रकाश
चारों ओर स्फुरित हो रहा था, उस
तेजोमय प्रकाश से समस्त अन्धकार
पूर्णतया नष्ट हो गया।
आपकी शक्ति से धारित
सुविकसित दल वाले उस अत्यन्त विचित्र कमल के ऊपर
पद्मजन्मा ब्रह्मा आविर्भूत हुए,
जिन्हें पहले से ही समस्त वेद
राशि का ज्ञान था। अनन्त
वीर्यान्वित भूमन! इस प्रकार
पाद्मकल्प में निश्चय ही आपने ब्रह्मा को आविर्भूत किया।वह
कमलभू ब्रह्मा नाभि कमल पर
स्थित, सोचने लगे कि यह कमल
इस एकार्णव में कहां से उत्पन्न हुआ?
यह जानने की जिज्ञासा से उन्होने
चारो दिशाओं में मुंह घुमाया। इससे वे चार मुख वाले हो गये जिनमें आठ
नेत्र कमल विकसित हो रहे थे। उस
महार्णव में उस कमल को ही लहराते
हुए देख कर और उसके आधारभूत
आपके शरीर को न देख कर,
ब्रह्मा चिन्ता में पड गये कि इस महान कमल के उदर में वे अकेले थे और
वह कमल कहां से आया तथा किसने
उसे पैदा किया। अवश्य ही इस कमल
के प्रकट होने का कोई तो कारण
होगा' -इस प्रकार निश्चय करके वे
परिपक्व बुद्धि वाले ब्रह्मा अपनी योग विद्या के बल से
उस कमल के नाल के छिद्र से नीचे
उतर आये। परन्तु उन्हें कुछ दिखाई
नही दिया , फिर ब्रह्मा जी ने एक
सौ दिव्य वर्ष तक कमल नाल के
सभी छिद्रों का प्रयत्न पूर्वक अन्वेषण किया। किन्तु वे
कहीं भी कुछ भी नहीं देख पाये। वे
क्मलनाल के रास्ते से फिर कमल के
अन्दर आ कर सुखपूर्वक बैठ गये।
फिर उन्होंने एकाग्र चित्त से
एकमात्र आपकी अनुकम्पा के आग्रही हो कर समाधि बल
का आश्रय लिया।
कमलजन्मा ब्रह्मा सैकडों दिव्य
वर्षों तक दृढ समाधि में स्थित रहे।
उस समाधि के तेज से उनमें ज्ञान
का प्रकाश प्रफुल्लित हुआ। तब, सामान्य जनों के लिये अदृश्य,
भगवान् नारायण का अद्भुत रूप
उन्होंने अन्तर्दृष्टि द्वारा देखा,
जो शेषनाग के शरीर के भाग
का आश्रय लिये हुए थे। वह रूप देख
कर ब्रह्मा अत्यन्त सन्तुष्ट हो गए। किरीट और मुकुट से सुशोभित,
कङ्गन हार और बाजूबन्द से युक्त,
मणियों से शोभायमान करधनी एवं
सुचारु रूप से पहना हुआ पीताम्बर
वाला, कलाय पुष्पों के समान कोमल,
गले में कौस्तुभ पहने हुए, भगवान् नारायण ने यह स्वरुप
ब्रह्मा जी को दिखाया। "हे
लक्ष्मीपते! शास्त्रों के विभिन्न
वाक्यों में आपका अनन्त वैभव
प्रतिपादित है। हे हरे! आपकी जय
हो। हे प्रभू! सौभाग्य से आप मुझे दृष्टिगोचर हुए हैं। कृपा करिये
कि शीघ्र ही मेरे मन में
सृष्टि रचना की क्षमता उत्पन्न
हो।" इस प्रकार ब्रह्मा ने आपके
गुणों के समूहों का वर्णन किया। "हे
ब्रह्मन! आप फिर से तप करें और आपको तीनों भुवनों की रचना की अमिट
दक्षता प्राप्त हो। और मेरी कृपा से
आपको मुझमें अनन्त
सिद्धियों वाली तीव्रतम
भक्ति प्राप्त हो"। यह वचन कह कर
विष्णु जी ने ब्रह्मा का चित्त उल्लासपूर्ण कर दियाऔर
उनको सृष्टि रचना की प्ररणा दी ।
ॐ ॐ —

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