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Saturday, August 25, 2012

अहिल्या प्रकरण : कम्बन

वे प्राचीर-वलयित मिथिला के पास पहुंचे और अलंकृत उच्च पताकाओं वाले प्राचीर के इस पार खड़े हो गये। वहां खुले मैदान में ऊंचाई पर एक काली शिला थी, जो किसी समय में अहिल्या थी, महामहर्षि की वह पत्नी जिसने गृहस्थी की गरिमा को नष्ट करते हुए अपना चरित्र खोया था। (पद संख्या 547)
राम की दृष्टि शिला पर पड़ी। उनकी चरण-धूलि के लगने पर अहिल्या अपने पूर्वरूप में आकर खड़ी हो गयी जैसे भगवान के चरणों में आते ही अविद्या-प्राप्त मिथ्या रूप को छोड़ कर ज्ञानी आत्म-रूप को पा गये हों। (548)
इसके बाद राम विश्वामित्र से पूछते हैं कि यह सुंदर स्त्री पत्थर कैसे बन गयी थी। विश्वामित्र जवाब देते हैं :
सुनिए, एक बार उज्ज्वल कुलिशपाणि इंद्र ने दुर्गुण-विमुक्त-चित्त महर्षि गौतम की अनुपस्थिति के समय उनकी मृगनयनी पत्नी के मनोरम उरोजों के स्पर्श का सुख भोगना चाहा। (551)
कामदेव के बाणों से आहत, भाले की तरह बेधती दृष्टि से आहत इंद्र उस पीड़ा से मुक्ति का उपाय ढूंढ़ते फिरे। एक दिन काम-मोह में अपनी बुद्धि खोकर उन्होंने गौतम को आश्रम से हटाने का उपाय किया; फिर जिन मुनिवर के मन को असत्य छू भी नहीं गया था, उनका रूप धर कर आश्रम में प्रवेश कर गये। (552)
प्रवेश करके वे अहिल्या के साथ संभोग में लग गये। कामोद्दीप्त यह संगम अपूर्व था और इसने मधुर सुरा के समान दोनों को नशे में चूर कर दिया। अहिल्या सत्य जान गयीं, फिर भी संभल नहीं पायीं और मग्न रह गयीं। किंतु त्रिलोचन शिवजी के समान शक्ति रखने वाले मुनि गौतम ने देर नहीं की और त्वरित गति से लौट आये। (553)
गौतम, जो प्रत्यंचा पर रख कर बाण नहीं चलाते थे, शाप और वर की अचूक शक्ति से संपन्न थे। जब वे आये, तो उन्हें देख कर असमाप्य विश्व में कभी समाप्त न होने वाली निंदा का पात्र बनी अहिल्या भयभीत हो एक ओर खड़ी रहीं। डर से इंद्र भी कांप गये और एक बिल्ली का रूप लेकर वहां से खिसकने लगे। (554)
जो कुछ हुआ था, उसे आग बरसाती आंखों से देख कर गौतम ने, हे राम! आपके संतापी शर के समान, ये शब्द कहे, 'तुम्हारे शरीर पर सहस्र योनियां उत्पन्न हो जायें।' पलक झपकते ही इंद्र का शरीर उनसे युक्त हो गया। (555)
लज्जा से गड़े हुए और पूरी दुनिया के लिए हास्य का पात्र बन कर इंद्र रवाना हुए। अपनी मृदुल स्वभाव वाली पत्नी को देख मुनि ने शाप दिया, 'ओ वेश्या-समान स्त्री! तू पत्थर बन जा।' और वह कठोर, काली शिला में बदल कर वहीं गिर गयीं। (556)
फिर भी गिरने से पहले उन्होंने अनुनय किया, 'ओ मेरे शिव-सम स्वामी! कहते हैं, अपराध को क्षमा करना भी बड़ों का कर्तव्य है। आप मुझे शाप-मोचन का कुछ उपाय बताइये।' मुनि ने कहा, 'भ्रमर-गुंजरित शीतल माला से अलंकृत राम आयेंगे। उनकी चरण-धूलि लगने पर तुम्हें इस प्रस्तर-शरीर से मुक्ति मिलेगी।' (557)
उधर देवताओं ने अपने राजा को देखा और ब्रह्मा के नेतृत्व में वे गौतम के पास पहुंचे और गौतम से कृपा करने की प्रार्थना की। गौतम अब तक शांत हो चुके थे। इसलिए उन्होंने उन अवयवों को सहस्र नेत्रों में बदल दिया। अहिल्या पत्थर की मूर्ति बनी पड़ी रहीं। (558)
यही पूर्ववृत्तांत है। अब आगे से संसार के प्राणियों के लिए कोई दुख नहीं होगा, केवल मुक्ति होगी। ओ मेघ-वर्ण प्रभु श्रीराम! अंजन वर्ण (काले रंग) की ताड़का से जो आपने युद्ध किया उसमें मैंने आपके हाथ की महिमा देखी और यहां आपके चरणों की। (559)6

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