दूर से बोधीसिंह का बाजा बजता हुआ आ रहा था। नन्हकू सिंह ने पूछा-”यह किसकी बारात है?”
“ठाकुर बोधी सिंह के लड़के की।” -मन्नू के इतना कहते ही नन्हकू के ओठ फड़कने लगे। उसने कहा-”मन्नू! यह नहीं हो सकता। आज इधर से बारात न जायेगी। बोधीसिंह हमसे निपटकर तब बारात इधर से जा सकेंगे।”
मन्नू ने कहा-” तब मालिक, मैं क्या करूं?”
नन्हकू गंड़ासा कंधे पर से और ऊंचा करके मलूकी से बोला-” मलुकिया देखता है, अभी जा ठाकुर से कह दे कि बाबू नन्हकू सिंह आज यहीं लगाने के लिये खड़े हैं।
समझकर आवें, लड़के की बारात है।” मलुकिया कांपता हुआ ठाकुर बोधीसिंह के पास गया। बोधीसिंह और नन्हकू में पांच वर्ष से सामना नहीं हुआ था। किसी दिन नाल पर कुछ बातों में ही कहा-सुनी होकर, बीच-बचाव हो गया था। फिर सामना नहीं हो सका। आज नन्हकू जान पर खेलकर अकेले खड़ा है। बोधीसिंह भी उस आन को समझते थे। उन्होंने मलूकी से कहा-” जा बे, कह दे कि हमको क्या मालूम कि बाबू साहब वहां खड़े हैं। जब वह हैं ही, तो दो समधी जाने का क्या काम है।”बोधी सिंह लौट गये और मलूकी के कंधे पर तोड़ा लदवाकर बाजे के आगे नन्हकू सिंह बारात लेकर गये। ब्याह में जो कुछ लगा खर्च किया। ब्याह करा कर तब, दूसरे दिन इसी दुकान तक आकर रुक गये। लड़के को और उसकी बारात को उसके घर भेज दिया।
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