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Saturday, September 29, 2012

श्राद्ध: दस सवाल जो आज के युवा पूछना चाहते हैं

श्राद्ध: दस सवाल जो आज के
युवा पूछना चाहते हैं
1. श्राद्ध क्या है?
श्राद्ध प्रथा वैदिक काल के बाद शुरू हुई।
और इसके मूल में उपरोक्त श्लोक
की भावना है। उचित समय पर
शास्त्रसम्मत विधि द्वारा पितरों के
लिए श्रद्धा भाव से मंत्रों के साथ
जो (दान-
दक्षिणा आदि) दिया जाए, वही श्राद्ध
कहलाता है।
2. श्राद्ध के मुख्य देवता कौन हैं?
वसु, रुद्र तथा आदित्य, ये श्राद्ध के
देवता हैं।
3. श्राद्ध किसका किया जाता है? और
क्यों?
हर मनुष्य के तीन पूर्वज : पिता, दादा और
परदादा क्रमश: वसु, रुद्र और
आदित्य के समान माने जाते हैं। श्राद्ध के
वक्त वे ही सभी पूर्वजों के
प्रतिनिधि समङो जाते हैं। समझ जाता है,
कि वे श्राद्ध कराने वालों के शरीर में
प्रवेश करते हैं। और ठीक ढंग से किए श्राद्ध
से तृप्त होकर वे अपने वंशधर के सपरिवार
सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान देते
हैं। श्राद्ध के बाद उस दौरान उच्चरित
मंत्रों तथा आहुतियों को वे
सभी पितरों तक ले जाते हैं।
4. श्राद्ध कितनी तरह के होते हैं?
नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य
श्राद्ध, श्राद्ध के दिनों में मृतक के निधन
की तिथि पर, नैमित्तिक किसी विशेष
पारिवारिक मौके (जैसे पुत्र जन्म) पर और
काम्य विशेष मनौती के लिए
कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र में
किया जाता है।
5. श्राद्ध कौन-कौन कर सकता है?
आमतौर पर पुत्र ही अपने
पूर्वजों का श्राद्ध करते पाए जाते हैं।
लेकिन शास्त्रनुसार ऐसा हर
व्यक्ति जिसने मृतक की संपत्ति विरासत में
पाई है, उसका स्नेहवश श्राद्ध कर
सकता है। यहाँ तक
कि विद्या की विरासत से लाभान्वित
होने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु
का श्राद्ध कर सकता है। पुत्र
की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र
श्राद्ध करते हैं। निस्संतान
पत्नी को पति द्वारा,
पिता द्वारा पुत्र को और बड़े भाई
द्वारा छोटे भाई को पिण्ड
नहीं दिया जा सकता। किन्तु कम उम्र
का ऐसा बच्च, जिसका उपनयन न हुआ हो,
पिता को जल देकर नवश्राद्ध कर
सकता है। शेष कार्य (पिण्डदान,
अग्निहोम) उसकी ओर से कुल पुरोहित
करता है।
6. श्राद्ध के लिए उचित और वजिर्त
पदार्थ क्या हैं?
श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं : तिल, माष,
चावल, जाै, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और
फल। तीन चीजें शुद्धि कारक हैं :
पुत्री का पुत्र, तिल और नेपाली कम्बल!
श्राद्ध करने में तीन बातें प्रशंसनीय हैं :
सफाई, क्रोधहीनता और चैन
(त्वरा (शीघ्रता) का न होना)। श्राद्ध
में अत्यन्त महत्वपूर्ण बातें हैं : अपरान्ह
का समय, कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छता,
उदारता से भोजनादि की व्यवस्था और
अच्छे ब्राह्मणों की उपस्थिति।
कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में
नहीं लगते, इस प्रकार हैं : मसूर, राजमा,
कोदों, चना, कपित्थ, अलसी (तीसी, सन,
बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक।
भैंस, हरिणी, ऊँटनी, भेड़ और एक खुर वाले
पशुओं का दूध भी वजिर्त है। पर भैंस
का घी वजिर्त नहीं। श्राद्ध में दूध,
दही और घी पितरों के लिए विशेष
तुष्टिकारक माने गए हैं।
7. श्राद्ध में कुश तथा तिल का क्या महत्व
है?
दर्भ या कुश को जल और
वनस्पतियों का सार माना गया है।
माना यह भी जाता है कि कुश और तिल
दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़
पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा-
विष्णु-महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और
अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग
देवताओं का, मध्य मनुष्यों का और जड़
पितरों का माना जाता है। तिल
पितरों को प्रिय और दुष्टात्माओं को दूर
भगाने वाले माने जाते हैं। माना गया है
कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाए,
तो दुष्टात्माएँ हवि उठा ले जाती हैं।
8. दरिद्र व्यक्ति श्राद्ध कम खर्चे में कैसे
करे?
विष्णु पुराण के अनुसार दरिद्र लोग केवल
मोटा अन्न, जंगली साग-पात-फल और
न्यूनतम दक्षिणा, वह भी न हो तो सात
या आठ तिल अंजलि में जल के साथ लेकर
ब्राह्मण को दे दें। या किसी गाय
को दिनभर घास खिला दें। अन्यथा हाथ
उठाकर दिक्पालों और सूर्य से याचना करें
कि मैंने हाथ वायु में फैला दिए हैं, मेरे पितर
मेरी भक्ति से संतुष्ट हों।
9. पिण्ड क्या हैं? उनका अर्थ क्या है?
श्राद्ध के दौरान पके हुए चावल दूध और
तिल मिश्रित जो पिण्ड बनाते हैं, उसे
सपिण्डीकरण कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है
शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे
विज्ञान भी मानता है, कि हर पीढ़ी के
भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले
की पीढ़ियों के समन्वित गुणसूत्र मौजूद
होते हैं। चावल के पिण्ड जो पिता,
दादा और परदादा तथा पितामह के
शरीरों का प्रतीक हैं, आपस में मिलाकर
फिर अलग बाँटते हैं। यह प्रतीकात्मक
अनुष्ठान जिन-जिन लोगों के गुणसूत्र
(जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में
हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है। इस
पिण्ड को गाय-कौओं को देने से पहले
पिण्डदान करने वाला सूँघता भी है। अपने
यहां सूँघना यानी आधा भोजन
करना माना गया है। इस तरह श्राद्ध
करने वाला पिण्डदान के पहले अपने
पितरों की उपस्थिति को खुद अपने भीतर
भी ग्रहण करता है।
10. इस पूरे अनुष्ठान का अर्थ क्या है?
अपने दिवंगत बुजुर्गो को हम दो तरह से
याद करते हैं : स्थूल शरीर के रूप में और
भावनात्मक रूप से! स्थूल शरीर तो मरने के
बाद अग्नि या जलप्रवाह को भेंट कर देते हैं,
इसलिए श्राद्ध करते समय हम
पितरों की स्मृति उनके ‘भावना शरीर’
की पूजा करते हैं ताकि वे तृप्त हों, और हमें
सपरिवार अपना स्नेहपूर्ण आशीर्वाद दें।

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