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Monday, September 03, 2012

वेदों का इतिहास जानें...

।।ॐ।। वेद 'विद' शब्द से बना है
जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना,
ज्ञाता या जानने वाला;
मानना नहीं और न ही मानने वाला।
सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-
परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य। जाँचा-
परखा मार्ग। इसी में संकलित है 'ब्रह्म
वाक्य' ।
वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने
लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार
पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर
ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं।
इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत
ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत
सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने
ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30
पांडुलिपियों को सांस्कृतिक
धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में
भारत की महत्वपूर्ण
पांडुलिपियों की सूची 38 है।
वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु'
धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु'
यानी सुनना। कहते हैं कि इसके
मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन
तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से
सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन
थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार
ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि,
वायु, अंगिरा और आदित्य।
वेद वैदिककाल की वाचिक
परम्परा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-
पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से
चली आ रही है। विद्वानों ने संहिता,
ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन
चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये
चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते
हैं। बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।
संहिता : मन्त्र भाग। वेद के मन्त्रों में
सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक ऋषि जब स्वर
के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं,
तो चित्त प्रसन्न हो उठता है।
जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध
हो उठता है।
ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से
यज्ञों की चर्चा है। वेदों के
मंत्रों की व्याख्या है। यज्ञों के विधान
और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है।
मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2)
तैत्तिरीय और (3) शतपथ।
आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'।
अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़
गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : (1)
ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4)
तैत्तिरीय और (5) तवलकार।
उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग
कहा गया है और यही वेदों का अंतिम
सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण वेदांत
कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के
संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक
वर्णन मिलता है।
उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है,
लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध
हैं। मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न,
मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य,
बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। असंख्य वेद-
शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और
उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में
ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस,
सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस
उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।
वैदिक काल :
प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक
साहित्य का रचनाकाल 2000-2500
ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल
वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई।
विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरुआत
4500 ई.पू. से मानी है। अर्थात यह धीरे-
धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है
कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित
किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद
जिसे वेदत्रयी कहा जाता था।
मान्यता अनुसार वेद का विभाजन राम के
जन्म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ
था। बाद में अथर्ववेद का संकलन
ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया।
दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है
कि कृष्ण के समय द्वापरयुग
की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने
वेद को चार प्रभागों संपादित करके
व्यवस्थित किया। इन
चारों प्रभागों की शिक्षा चार
शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु
को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को,
यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद-
जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु
को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में
आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह
भी तथ्य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण
के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्य ढूँढ
लिए गए हैं।
वेद के विभाग चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद,
सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-
रूपांतरण, साम-गतिशील और अथर्व-जड़।
ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम
को काम, अथर्व को अर्थ
भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर
धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और
मोक्षशास्त्र की रचना हुई।
ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान।
इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद
की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना,
स्तुतियाँ और देवलोक में
उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5
शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन,
शांखायन, मंडूकायन।
यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु।
यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु
का अर्थ होता है आकाश। इसके
अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा।
यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं।
इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के
अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद
की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।
सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और
संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें
1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद
की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के
सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3
शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर
संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।
अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व
का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते
हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन
रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर
मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987
मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद
की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय
विद्या का वर्णन है।
उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और
आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान
किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने
काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान
व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक
और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन
भी मिलता है।
छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा,
(2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5)
ज्योतिष और (6) कल्प।
छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3)
छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4)
धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक। ये
6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन
कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग,
न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।
वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद
का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और
अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये
क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।
आधुनिक विभाजन : आधुनिक
विचारधारा के अनुसार
चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार
किया गया- (1) याज्ञिक, (2)
प्रायोगिक और (3) साहित्यिक।
वेदों का सार है उपनिषदें और
उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है।
इस क्रम से वेद, उपनिषद और
गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई
नहीं। स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत
समझाया गया है। वाल्मिकी रामायण
और महाभारत को इतिहास
तथा पुराणों को पुरातन इतिहास
का ग्रंथ माना है। विद्वानों ने वेद,
उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित
बताया है।
ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है
और वेदों को ईश्वर वाक्य। वेद ऋषियों के
मन या विचार की उपज नहीं है। ऋषियों ने
वह लिखा या कहा जैसा कि उन्होंने
पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा, सुना और
परखा।
मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से
कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम
प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के
ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के
भेद को नहीं मानते। ऋग्वेद की ऋचाओं में
लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें
से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं।
जन्म के आधार पर जाति का विरोध
ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व
श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक (IV.13),
(XVIII.41) में मिलता है।
श्लोक :
श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र
दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे
स्मृतिर्त्वरा ॥
भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और
दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद
की बात की मान्य होगी।-वेद व्या स
प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व
अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन
की गति को मापा गया है। ऋषि-
मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु
अविचल का साक्षात्कार किया और उसे
'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य'
बना दिया।।। ॐ ।।

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