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Friday, September 28, 2012

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कुछ क्वालिटी प्रोडक्ट


हमने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कुछ क्वालिटी प्रोडक्ट के बारे में आपको बताया था आज उसी की समापन कड़ी है और हमेशा की तरह ये लेख भी भाई राजीव दीक्षित के विभिन्न व्याख्यानों में से जोड़कर बनाया गया है। 

इससे पहले वाली कड़ी यहाँ देखें: http://on.fb.me/OwlfRG
गतांक से आगे.....




6. पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग, मैगी

अभी सबसे सनसनीखेज रहस्योदघाटन हुआ है कि पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग और मैगी के बारे में, ये सब सूअर के मांस से बनते हैं और भारतीय मूल के एक व्यक्ति जो अमेरिका में रहते हैं, वो कट्टर जैन हैं, उन्होंने अमेरिका के मैकडोनाल्ड कंपनी पर केस किया है कि इन्होने मेरा धर्म भ्रष्ट किया है। वो कैसे ? तो कंपनी बोलती है "This is all Vegetarian" तो वो बेचारे खाते रहे बहुत दिनों तक, फिर एक दिन उनको इसके स्वाद में अंतर लगा तो उन्होंने पिज्जा, बर्गर ख़रीदा और लेबोरेटरी में टेस्ट करने के लिए भेज दिया तो लेबोरेटरी वालों ने कहा कि ये सूअर की चर्बी से बना है, तो उन्होंने कंपनी के ऊपर दावा ठोंक दिया, मुकदमा चल रहा है, थोड़े दिनों में फैसला भी आ जायेगा और कंपनी उस महानुभाव से समझौता करना चाहती है कि "आप मुकदमा वापस ले लो, हम 50 करोड़ डौलर दे देंगे आपको", लेकिन वो कट्टर जैन भाई का कहना है कि "मैं आपको सबक सिखाऊंगा, पैसे नहीं लेने हैं मुझे, सारी दुनिया को पता चले कि ये पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग सूअर के मांस से बनता है"। तो आप उन सभी भारतीयों से, जो शाकाहारी हैं, निवेदन है कि ये सब मत खाइए।

देखिये अमेरिका और यूरोप में ले देकर एक ही चीज का उत्पादन होता है और वो है गेँहू और उसके साथ आलू और प्याज। अब इस गेँहू से वो मैदा बनाते हैं और उसे सड़ाकर (Ferment) पावरोटी और डबल रोटी बनाते हैं और उनके ये पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग सब के सब पावरोटी से ही बनते हैं, उसी में आलू और प्याज मिला के खा लेते हैं या कुछ बाहर से मंगाई गयी हरी सब्जियों को मिला के खा लेते हैं। उनके देशों में कोई हमारे देश की माताओं और बहनों की तरह रोटी बनाना नहीं जानता और चावल का भात, पुलाव भी बनाना उन्हें नहीं आता, इसलिए ये पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग, मैगी उनके मजबूरी का खाना है और वो इसे मन मार कर खाते हैं। हम भारत के लोग क्यों नक़ल करें उनका ? हमारे यहाँ तो इतने प्रकार के व्यंजन हैं कि आज कोई व्यंजन आप बनाते हैं तो उसका नंबर एक साल के बाद या दो साल के बाद आएगा। हमारे देश के तथाकथित पढ़े-लिखे लोगों की ये समस्या है कि यूरोप और अमेरिका के लोगों के Compulsion को इन्होने अपना Status Symbol बना लिया है।
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7. पेप्सी और कोका कोला

एक पेय पदार्थ है जिसको हम कोल्ड ड्रिंक के नाम से जानते हैं, इस क्षेत्र में अमेरिका की दो कंपनियों का एकाधिकार है, एक का नाम है पेप्सी और दूसरी है कोका कोला। 1990 -91 में दोनों कंपनियों का संयुक्त रूप से जो विदेशी पूंजी निवेश था भारत में, उसे सुनकर आश्चर्य करेंगे आप, दोनों ने मिलकर लगभग 10 करोड़ की पूंजी लगाई थी भारत में, कुल जमा 10 करोड़ रुपया (डौलर नहीं)। अर्थशास्त्र की भाषा में इसको Initial Paid-up Capital कहते हैं। इन दोनों कंपनियों के कुल मिलाकर 64 कारखाने हैं पूरे भारत में और मैं उन कारखानों में घुमा और इनके अधिकारियों से बात करके जानकारी लेने की कोशिश की, क्योंकि इनके वेबसाइट पर इनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इन कंपनियों ने भारत के शेयर बाजार में भी अपनी लिस्टिंग नहीं कराई है, इनका रजिस्ट्रेशन नहीं है हमारे यहाँ के शेयर मार्केट में। बॉम्बे स्टोक एक्सचेंज (BSE) या NSE में जिन कंपनियों की लिस्टिंग नहीं होती उनके बारे में पता करना या उनके आंकड़े मिलना एकदम असंभव होता है।

इन कंपनियों के एक बोतल पेय की लागत मात्र 70 पैसे होती है, आप कहेंगे कि मुझे कैसे मालूम ? भारत सरकार का एक विभाग है जिसका नाम है BICP, ब्यूरो ऑफ़ इंडस्ट्रियल कास्ट एंड प्राईसेस, यही वो विभाग है जिसे भारत में उत्पन्न होने वाले हर औद्योगिक उत्पादन की लागत पता होती है, वहीं से मुझे ये जानकारी मिली थी। आप हैरान हो जायेंगे ये जानकर कि 70 पैसे का जो ये लागत है इनका वो एक्साइज ड्यूटी देने के बाद की है, यानि एक्स-फैक्ट्री कीमत है ये। अगर एक बोतल 10 रुपया में बिक रहा है तो लगभग 1500% का लाभ ये कंपनी एक बोतल पर कमा रही है और जब पेप्सी और कोका कोला के 64 कारखानों में होने वाले एक वर्ष के कुल उत्पादन के बारे में पता किया तो पता चला कि ये दोनों कंपनियाँ एक वर्ष में 700 करोड़ बोतल तैयार कर के भारत के बाजार में बेंच देती हैं और कम से कम 10 रूपये में एक बोतल वो बेचती हैं तो आप जोडिये कि हमारे देश का 7000 करोड़ रुपया लूटकर वो भारत से ले जाती हैं।

और इस 7000 करोड़ रूपये की लुट होती है एक ऐसे पानी को बेच कर जिसमे जहर ही जहर है, एक पैसे की न्यूट्रीशनल वैल्यू नहीं है जिसमें। भारत के कई वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं ? पेप्सी और कोका कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये टॉप सीक्रेट है, ये बताया नहीं जा सकता, लेकिन आज के युग में कोई भी सीक्रेट को सीक्रेट बना के नहीं रखा जा सकता। तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, इसमें मिला होता है:

सोडियम मोनो ग्लूटामेट और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने वाला रसायन है।
फिर दूसरा जहर है - पोटैसियम सोरबेट - ये भी कैंसर करने वाला है।
तीसरा जहर है - ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल (BVO) - ये भी कैंसर करता है।
चौथा जहर है - मिथाइल बेन्जीन - ये किडनी को ख़राब करता है।
पाँचवा जहर है - सोडियम बेन्जोईट - ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है।
फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है - एंडोसल्फान - ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है - कार्बन डाईऑक्साइड - जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को "कार्बोनेटेड वाटर" कहा जाता है और इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते।

ज्यादातर लोगों से पूछिये कि "आप ये सब क्यों पीते हैं ?" तो कहते हैं कि "ये बहुत अच्छी क्वालिटी का है"। अब पूछिये कि "अच्छी क्वालिटी का क्यों है" तो कहते हैं कि "अमेरिका का है" और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं। तो ऐसे लोगों को ये जानकारी मैं दे दूँ कि अमेरिका की एक संस्था है FDA (Food and Drug Administration) और भारत में भी ऐसी ही एक संस्था है, उन दोनों के दस्तावेजों के आधार पर मैं बता रहा हूँ कि, अमेरिका में जो पेप्सी और कोका कोला बिकता है और भारत में जो पेप्सी-कोक बिक रहा है, तो भारत में बिकने वाला पेप्सी-कोक, अमेरिका में बिकने वाले पेप्सी-कोक से 40 गुना ज्यादा जहरीला होता है, सुना आपने ? 40 गुना, मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूँ और हमारे शरीर की एक क्षमता होती है जहर को बाहर निकालने की और उस क्षमता से 400 गुना ज्यादा जहरीला है, भारत में बिकने वाला पेप्सी और कोक। ये है पेप्सी-कोक की क्वालिटी और वैज्ञानिकों का कहना है कि जो ये पेप्सी-कोक पिएगा उनको कैंसर, डाईबिटिज, ओस्टियोपोरोसिस, ओस्टोपिनिया, मोटापा, दाँत गलने जैसी 48 बीमारियाँ होंगी।

पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ - स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं। आपने सुना होगा तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं, इसके पीछे तथ्य है, तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर और पेप्सी-कोक की Ph वैल्यू एक ही है। मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास करता हूँ। Ph एक इकाई होती है जो एसिड की मात्रा बताने का काम करती है और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है। शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है और 7 Ph को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते ये मात्रा कम होती जाती है। जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा। इस्तेमाल कर के देखिएगा। जब हमने पेप्सी और कोक के खिलाफ अभियान शुरू किया था तो हम अकेले थे लेकिन आज भारत में 70 संस्थाएं हैं जो पेप्सी-कोक के खिलाफ अभियान चला रहीं हैं, हम खुश हैं कि इनके बिक्री में कमी आयी है। ये पूरी तरह भारत में बंद हो जाएगी अगर आप इस को बात समझे और खरीदना बंद करें।

इसे पढ़ें: http://en.wikipedia.org/wiki/ Criticism_of_Coca-Cola
http://www.organicconsumers.org/Toxic/pepsi_coke_pesticides.cfm
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8. फेयर एंड लवली

इस देश में एक क्रीम बिकती है जो दावा करती है कि उसके क्रीम से गोरापन आता है, नाम है फेयर एंड लवली। ये हिन्दुस्तान यूनिलीवर का उत्पाद है। एक बार हमने मद्रास हाई कोर्ट में इस कंपनी के खिलाफ केस किया और हम जीते कंपनी हारी थी, हुआ क्या कि, मेरा एक दोस्त है जो तमिलनाडु का है और मेरे साथ होस्टल में रहता था, वो बहुत काला है और 15 सालों तक फेयर एंड लवली लगाता रहा लेकिन उसके रंग में कोई बदलाव नहीं हुआ, मतलब काला का काला ही रहा। हमारे केस की सुनवाई के समय जब जज साहब ने कंपनी वालों से पूछा कि "आपने इसमें क्या मिलाया है कि जो किसी काले व्यक्ति को गोरा बना देता है" तो कंपनी वालों ने कहा कि "कुछ नहीं", फिर जज साहब ने पूछा कि "तो ये बनती कैसे है", तो कंपनी वालों का जवाब था कि "सूअर की चर्बी के तेल से हम इसे बनाते हैं" और भारत की करोड़ों माताएं और बहनें रोज इसे लगाकर अपना धर्म भ्रष्ट कर रहीं हैं और सोचती हैं कि वो गोरी हो रही हैं, सुन्दर हो रही हैं और 50 ग्राम के ट्यूब का दाम है 75 रुपया, 100 ग्राम का दाम हुआ 150 रुपया और एक किलो का दाम हुआ 1500 रुपया, ये कौन सी बुद्धिमानी है ? सुन्दरता फेयर एंड लवली से नहीं आती है, सुन्दरता आती है गुण,कर्म और स्वभाव से।

त्वचा रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि "भारत के लोगों के शरीर का जो रंग है वो त्वचा रोगों से लड़ने में सबसे कारगर है, गोरी चमड़ी के मुकाबले", ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे शरीर में मेलानिन (Melanin) नामक एक पिगमेंट होता है जो हमारे त्वचा को सूर्य के गर्मी से बचाता है और फेयर एंड लवली इस मेलानिन को पैदा करने वाले मेलानोसाइट्स (Melanocytes) को मार देता है। हमारे शरीर का रंग हमारे डीएनए से तय होता है और दुनिया में ऐसा कोई क्रीम नहीं है जो आपके डीएनए को बदल दे। अगर इनका फेयर एंड लवली लगाने से लोग गोरे होते तो अफ्रीका के लोग काले नहीं रहते। अपने गुण, कर्म और स्वभाव को सुन्दर बनाइये, लोग इसी को याद रखते हैं। अब तो शाहरुख़ खान एक मर्दों वाली क्रीम का विज्ञापन कर रहे हैं और मर्दों को भी इसी घनचक्कर में डाल रहे हैं।
Fair and Lovely website also says that "The effect is reversible. The skin will return to its original tone in a few weeks, once you discontinue to use the product. In fact this is one of the key safety attributes in all our products." In simple English, what it means is that if you want to continue to be fair, please keep using their products. 
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9. विक्स

अमेरिका की एक कंपनी का एक उत्पाद है - विक्स। भारत में हमने एक टीम बना के एक छोटा सा सर्वेक्षण किया ये जानने के लिए कि किसी भी केमिस्ट के काउंटर पर बिना डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्सन के सबसे ज्यादा बिकने वाली दवा कौन सी है ? तो पता चला कि वो दवा है विक्स। गले की खिचखिच, तो विक्स ले लो, सर्दी, खांसी, जुकाम, तो विक्स ले लो, ऐसा धड़ाधड़ विज्ञापन ये करते हैं कि लोगों का दिमाग घूम जाता है और अकेला एक ब्रांड इस देश में सबसे ज्यादा बिक जाता है। फिर मैंने और हमारी टीम ने ये जानने की कोशिश की कि ये पता लगाओ कि ये कंपनी जो कि विक्स बनाती है, जिसका नाम है प्रोक्टर एंड गैम्बल, ये अमेरिकन कंपनी है, ये कंपनी इस विक्स को अमेरिका में बेचती है क्या ? और यूरोप के देशों में बेचती है क्या ? क्योंकि प्रोक्टर एंड गैम्बल का व्यापार दुनिया भर के देशों में है, 56 देशों में ये व्यापार करती है, तो पता चला कि अमेरिका में ये नहीं बिकता, फ़्रांस में नहीं बिकता, जर्मनी में नहीं बिकता, स्विट्ज़रलैंड में नहीं बिकता, स्वीडेन में नहीं बिकता, नार्वे में नहीं बिकता, आयरलैंड में नहीं बिकता, इंग्लैंड में नहीं बिकता।

किसी देश में उनका जो ब्रांड नहीं बिक रहा है वो भारत में उनका सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है और कंपनी को सबसे ज्यादा फायदा देती है। ये कंपनियाँ टेलीविजन के माध्यम से, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, अख़बारों के माध्यम से फिजूल की दवाएं भारत के बाजार में बेच लेती हैं। आप जानेंगे तो आश्चर्य करेंगे कि दुनिया भर के देशों में एक अंतर्राष्ट्रीय कानून है कि दवाओं का विज्ञापन आप टेलीविजन पर, पत्र-पत्रिकाओं में, अख़बारों में नहीं कर सकते, लेकिन भारत में धड़ल्ले से हर माध्यम में दवाओं का विज्ञापन आता है और भारत में भी ये कानून लागू है, उसके बावजूद आता है। जब इससे सम्बंधित विभागों के अधिकारियों से बात कीजिये तो वो कहते हैं कि "हम क्या कर सकते हैं, आप जानते हैं कि भारत में सब संभव है"। तो ऐसी बहुत सारी फालतू की दवाएँ हजारों की संख्या में भारत के बाजार में बेचीं जा रही हैं।  

विक्स नाम की दवा अमेरिका में बनाना और बेचना दोनों जुर्म है, अगर किसी डॉक्टर ने किसी को विक्स की प्रेस्क्रिप्सन लिख दे तो उस डॉक्टर को 14 साल की जेल हो जाती है, उसकी डिग्री छीन ली जाती है क्योंकि विक्स जहर है और ये आपको दमा, अस्थमा, ब्रोंकिअल अस्थमा कर सकता है। इसीलिए दुनिया भर में WHO और वैज्ञानिकों ने इसे जहर घोषित किया और ये जहर भारत में सबसे ज्यादा बिकता है विज्ञापनों की मदद से। विक्स बहुत ज्यादा महंगी मिलती है उदाहरण के तौर पर 25 ग्राम 40 रूपये की, 50 ग्राम 80 रूपये की और 100 ग्राम 160 रूपये की मतलब 1 किलो विक्स की कीमत 1600 रुपया है।

विक्स पेट्रोलियम जेली से बनता है जिसकी कीमत 60 -70 रूपये किलो है और विक्स की बिक्री में प्रोक्टर एंड गैम्बल कंपनी को (बीस हजार) 20000% से ज्यादा का मुनाफा है। ये मुनाफा आप की जेब से लूटा जा रहा है और सरकार इस घोटाले में शामिल है। सरकार ने लाइसेन्स दे रखा है, आँखे बंद कर रखी है और कंपनी देश को लूट रही है।
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10. मच्छर अगरबत्ती/लिक्विड/टिकिया

आप अपने घर में अक्सर मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती/लिक्विड/टिकिया इस्तेमाल करते हैं। अलग-अलग नामों से बाजार में वो बिक रहा है। इनमें इस्तेमाल होने वाले केमिकल हैं - डी एथिलीन, मेल्फोक्विन और फोस्फिन है , ये तीनों खतरनाक केमिकल हैं और ये तीनों केमिकल यूरोप और अमेरिका सहित 56 देशों में बंद हैं और पिछले 20 -22 साल से बंद हैं। हम हमारे घर में छोटे-छोटे बच्चों के ऊपर वो लगा के छोड़ देते हैं, मैंने कई घरों में देखा है कि दो महीने, तीन महीने के बच्चे सो रहे हैं और उनके बगल में वो अगरबत्ती जल रही है, जिसका धुआं नाक के रास्ते बच्चे के फेफड़े में उतर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये मच्छरों को मारने वाली दवाएँ अंत में मनुष्य को मार देती हैं। और इन तीनों जहरों का व्यापार पूरी तरह विदेशी कंपनियों के हाथ में हैं। ये अंधाधुंध आयात कर के इन केमिकलों को भारत में ला रहीं हैं और बेच रही हैं और इनके साथ भारत की भी कुछ देशी कंपनियाँ इस धंधे में लगी हैं।

ये था कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्वालिटी प्रोडक्ट की असलियत और हमारे भारत के पढ़े-लिखे लोगों की अनदेखी। 1757 में मीरजाफर ने अपनी हार और क्लाइव की जीत के बाद कहा कि "अंग्रेजो आओ तुम्हारा स्वागत है इस देश में, तुम्हे जितना लूटना है लूटो, बस मुझे कुछ पैसा दे दो और कुर्सी दे दो"। 1757 में तो सिर्फ एक मीरजाफर था जिसे कुर्सी और पैसे का लालच था अभी तो हजारों मीरजाफर इस देश में पैदा हो गए हैं जो वही भाषा बोल रहे हैं। जो वैसे ही देश को गुलाम बनाने में लगे हुए हैं, जैसे मीरजाफर ने इस देश को गुलाम बनाया था।

ये विदेशी कंपनियाँ खुलेआम अपना जहर भारत में बेच रही हैं और जिनको मालूम है, वही शांत हैं, यही इस देश का दुर्भाग्य है कि जिनके पास ज्ञान है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पर्दाफाश कर सकते हैं, जो ये सच्चाई बता सकते हैं, वही चुप हैं। जिस देश में आपने जन्म लिया, जिस देश की मिटटी में आप पले-बढे, जिस देश में आपने इतनी पढाई करके डिग्री ली, उस देश को वापस क्या दे रहे हैं आप ? ये जो कुछ भी चल रहा है वो एंटी नेशनल है, Contra- Constitutional है और संविधान में Article 51 है जो मुझे और आप सब को ये अधिकार देता है कि हम हमारे देश की रक्षा के लिए, देश की संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं (संवैधानिक दायरे में रहकर)। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समान के प्रति ये Ignorance अगर अनपढ़ लोगों में होता तो समझ में भी आता लेकिन ये गलती केवल पढ़े लिखे लोग ही कर रहे हैं, जिन्होंने डिग्री हासिल किया है, Ph.D. करके निकले हैं। जिन्होंने विज्ञान (Science) पढ़ा है वही आज सबसे ज्यादा अवैज्ञानिक (Unscientific) हो गए हैं। हमको खुद में बदलाव करना होगा। समाज में जब बड़े परिवर्तन होते हैं तो उन बड़े परिवर्तनों को जब बड़े लोग शुरू करते हैं तो नीचे के लोग फिर उसी की नक़ल करते हैं।

** प्रचार का चक्कर **
 आपसे मेरी एक विनती है कि आप Educated Idiot मत बनिए। ये विदेशी कंपनियों के विज्ञापन से प्रभावित होकर कुछ भी मत खरीदिये और मेरी एक बात हमेशा याद रखियेगा कि जिस वस्तु का जितना विज्ञापन होता है, उसकी क्वालिटी उतनी ही ख़राब होती है और जिस वस्तु की क्वालिटी जितनी अच्छी होती है उसका विज्ञापन उतना कम होता है।

# गाय के घी का विज्ञापन नहीं करना पड़ता, वो बिना विज्ञापन के बिकता है क्योंकि उसमे क्वालिटी है लेकिन डालडा का, रिफाइन तेल का विज्ञापन बार-बार करना पड़ता है क्योंकि क्वालिटी उसमें नहीं है।
# माँ के हाथ की बनाई हुई रोटी का विज्ञापन नहीं करना पड़ता लेकिन कारखानों में बनी पावरोटी और डबल रोटी बिना विज्ञापन के नहीं बिकती। पिज्जा का, बर्गर का, मैगी का बार-बार विज्ञापन करना पड़ता है।
# गन्ने का रस, मौसमी का रस, नारंगी का रस, सेव का रस बिना विज्ञापन के बिकता है लेकिन पेप्सी और कोका कोला का विज्ञापन बार-बार करना पड़ता है, क्योंकि क्वालिटी शून्य है। # कोलगेट, पेप्सोडेंट, क्लोज-अप का प्रचार बार-बार करना पड़ता है क्योंकि जहर है और दातुन बिना प्रचार के बिकता है क्योंकि बेस्ट क्वालिटी है।
# मिटटी के घड़े का विज्ञापन नहीं करना पड़ता क्योंकि पानी सबसे शुद्ध उसी में रहता है लेकिन रेफ्रिजरेटर बार-बार विज्ञापन करके ही बेचना पड़ता है क्योंकि वो जहर (क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन) छोडती है।
# माइक्रोवेब ओवन बिना विज्ञापन के नहीं बिकता और मिटटी का चूल्हा घर-घर में बनता है और लोग इस्तेमाल करते हैं। ऐसे बहुत से उदहारण हैं, तो आप से विनती है कि प्रचार देख के कोई वस्तु मत खरीदिये और सरकार को बार-बार दोष देना बंद करिए।

ऐसा लगता है कि सब की सब सरकारों को धृतराष्ट्र की आत्मा ने लील लिया है, क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सब का एक ही हाल है। पिछले बीस सालों में सभी पार्टियों ने इस देश पर शासन किया है, किसको अच्छा कहूँ ? धृतराष्ट्र तो अँधा था, ये तो आँखे रहते हुए अँधे हैं, सबो ने सत्ता का मोह पाल रखा है, देश और जनता की फ़िक्र किसे है ? इसलिए पार्टियों पर भरोसा करना छोडिये, अपने पर भरोसा करना सीखिए। जब सरकारें राष्ट्रविरोधी काम करना शुरू कर दें, सरकारें सिर्फ स्वार्थ और सत्ता में डूबकर काम करना शुरू कर दें तो राष्ट्र के लोगों को उठना ही होगा। आप पूछेंगे कि हम क्या करें ? सरकार इन सामानों पर पाबन्दी नहीं लगाती तो कम से कम आप तो पाबन्दी लगा दीजिये, आप तो बंद कर दीजिये इन सामानों को अपने घर में आने से, ये तो आपके अधिकार क्षेत्र में है ? इसके लिए तो प्रधानमंत्री से पूछने की जरूरत नहीं है कि आपके घर में ये जहर युक्त सामान आये। आप अपने घर के प्रधानमंत्री है, आप अपने घर का फैसला कीजिये और आपके घर में ये फैसला होना ही चाहिए।

भारत के लोग दो काम बहुत अच्छा करते हैं, एक तो ताली बजाना, अगर ये ताली बजाने की आदत नहीं होती तो रोबर्ट क्लाइव के रास्ते अंग्रेज इस देश में 1757 में अपनी सत्ता स्थापित नहीं कर पाते और रोबर्ट क्लाइव ने अपनी डायरी में ये बात लिखी है कि "भारत के लोग अगर ताली बजाने की जगह पत्थर उठा के मारे होते तो भारत में अंग्रेजों का शासन 1757 में ही ख़त्म हो गया होता", और दूसरा, नारा बहुत अच्छा लगाते हैं" भारत माता की जय", लेकिन काम करते हैं उल्टा। अगर आप सचमुच भारत माता की जय चाहते हैं तो अपने रहन-सहन में भारतीय बनिए और दूसरे भारतीयों से इस बारे में कहना शुरू कीजिये क्योंकि कहने में बहुत शक्ति होती है। हमारे देश में शब्दों को ब्रम्ह माना जाता है। शब्दों का इस्तेमाल करके ही भगवान श्रीकृष्ण ने कायर अर्जुन को लड़ने के लिए तैयार कर दिया था। गीता क्या है ? गीता भगवान श्रीकृष्ण के मुँह से बोले गए कुछ शब्द हैं और शब्द ही थे जिनका प्रयोग करके हमारे राजाओं ने अपने सैनिकों को प्रोत्साहित किया और कई बड़े युद्ध जीते। तो आप इस पत्र को पढ़कर सिर्फ ताली मत बजाइए, आप सरकारी भोंपुओं और मीडिया वाले भोपुओं से ज्यादा इन बातों का प्रचार-प्रसार कीजिये क्योंकि दुःख हमें है, आम भारतीय को।

--- भाई राजीव दीक्षित के व्याख्यानों से

जय हिंद, जय भारत !
राजीव दीक्षित अमर रहें !!

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