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Friday, September 28, 2012

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्वालिटी प्रोडक्ट (???)


इससे पहले मैंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक क्वालिटी प्रोडक्ट " दांतों का पेस्ट" के बारे में आपको बताया था आज उसी की अगली कड़ी और हमेशा की तरह ये लेख भी राजीव भाई के विभिन्न व्याख्यानों से लेकर प्रस्तुत किया गया है आप ज्यादा से ज्यादा इसे प्रेषित करें। 

इससे पहले वाली कड़ी यहाँ देखें: http://on.fb.me/OGFFKc
गतांक से आगे.....


2. बेबी (मिल्क) पाउडर

हमारे देश में एक विदेशी कंपनी है - नेस्ले, नेस्ले बेबी पाउडर (डब्बे का दूध) बेचती है। यूरोप के देशों में बेबी पाउडर बिकता नहीं, यूरोप के देशों में बेबी पाउडर को बेबी किलर कहते हैं। मैंने यूरोप के कई देशों में देखा है, बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे रहते हैं और सरकार की तरफ से उन होर्डिंगों पर प्रचार किया जाता है कि "आप अपने बच्चे को बेबी पाउडर मत खिलाईये"।  क्यों ? क्योंकि इसमें जहर है, तो पूरे यूरोप में ये जो बेबी पाउडर "बेबी किलर" कहा जाता है वही बेबी पाउडर धड़ल्ले से भारत के बाजार में बिक रहा है और बहुत वर्षों तक इस देश में जो बेबी पाउडर बिकता था, उसके डब्बे पर कुछ भी लिखा नहीं होता था, जब कुछ अच्छे लोगों ने इस मुद्दे को उठाया, हमारे जैसे विचार वाले कुछ डॉक्टरों ने संसद पर दबाव बनाया तब भारत की सरकार ने सिर्फ इतना सा संसोधन कर दिया कि "कंपनियों को बेबी पाउडर के डब्बे पर ये लिखना आवश्यक होगा कि माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है", बस बात ख़त्म। होता ये कि भारत सरकार इन डब्बे के दूध को भारत में प्रतिबंधित कर देती, लेकिन नहीं और भारत की पढ़ी-लिखी माताओं की हालत भी कुछ वैसी ही है, जो जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं वो उतना ही ज्यादा बेबी पाउडर पिलाती हैं अपने बच्चों को। कभी-कभी तो मुझे ये लगता है कि जैसे भारत में जब से बेबी पाउडर आया है तभी से बच्चे जवान हो रहे हैं, बिना बेबी पाउडर के तो लोग बड़े ही नहीं हुए होंगे इस देश में ? कुछ ऐसा ही माहौल बनाया गया है इस देश में पिछले कुछ वर्षों से, और विरोधाभास क्या है इस देश में कि बाजार में बेबी पाउडर भी बिक रहा है और "माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है" इस विषय पर सेमिनार भी आयोजित किये जाते हैं, करोड़ो रूपये खर्च कर के। सीधा ये नहीं करते कि बेबी पाउडर को प्रतिबंधित कर दे इस देश में। जिनको समझना चाहिए कि "माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है" वो सेमिनार में आते नहीं और जिनको ये समझ है वो कोई कैम्पेन चलाते नहीं, ये इस देश का दुर्भाग्य है।

इसे पढ़े --  http://www.babymilkaction.org/pages/history.html

3. हेल्थ टॉनिक  

हमारे देश में हेल्थ टॉनिक के नाम पर कई कंपनियाँ अपने उत्पाद बेचती हैं, जैसे हॉर्लिक्स, मालटोवा, बोर्नविटा, कॉम्प्लान, बूस्ट, प्रोटिनेक्स और खूबी की बात है कि इनमे हेल्थ के नाम पर कुछ भी नहीं है। कैसे ? ये कंपनियाँ इन हेल्थ सप्लीमेंट में मिलाती क्या हैं वो भी आप जान लीजिये। मालटोवा, बोर्नविटा, कॉम्प्लान और बूस्ट बनता है मूंगफली (सिंघदाना) की खली से। खली समझते हैं आप ? मूंगफली, सरसों, आदि का तेल निकालने के बाद जो उसका कचरा निकलता है, उसी को खली कहते है और भारत में गाय, बैल, भैंस जैसे जानवरों को खिलाने के लिए इस खली का प्रयोग किया जाता है। ये मालटोवा, बोर्नविटा, कॉम्प्लान और बूस्ट इसी मूंगफली की खली से बनाया जाता है, जो खली हमारे देश में जानवरों को खिलाया जाता है वही इस देश में अपने को पढ़े-लिखे और बुद्धिमान कहने वाले लोग खा रहे हैं। बाजार में आप चले जाइये, ये मूंगफली की खली 20 -25 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाएगी आपको। आप सौ डब्बे भी इन हेल्थ टोनिकों के खा लीजिये या अपने बच्चों को खिला दीजिये, कुछ नहीं होने वाला उससे और इसके बदले मूंगफली/सिंघदाना दीजिये गुड के साथ तो जितना प्रोटीन इससे मिलता है, जितनी कार्बोहाईड्रेट इससे मिलती है या और भी जितनी स्वास्थ्यवर्धक तत्व इससे मिलती है, उतना 100 पैकेट इन उत्पादों के खाने से भी नहीं मिल सकती। ये अपने डब्बे पर लिखते है कि इससे विटामिन मिलता है, प्रोटीन मिलता है, कैल्सियम मिलता है, वगैरह वगैरह, लिखने में क्या जाता है ? किसी ने कभी टेस्ट करके कोई समान ख़रीदा है क्या ? अरे मिटटी में भी 18 तरह के Micro Nutrients होते हैं तो क्या हम मिटटी खायेंगे ?
ऐसा ही एक और हेल्थ टॉनिक है - हॉर्लिक्स - हॉर्लिक्स में क्या है ? हॉर्लिक्स में है गेंहूँ का आटा, चने का सत्तू, जौ का सत्तू। बिहार में हम लोग उसको कहते हैं सत्तू और अंग्रेजी में कहते हैं - हॉर्लिक्स। आप किसी से पूछिये कि सत्तू खाओगे ? तो कहेगा कि - क्या फालतू की बात कर रहे हो और पूछेंगे कि हॉर्लिक्स खाओगे तो कहेगा -हाँ खायेंगे क्योंकि अंग्रेजी का नाम है, और बड़ा भारी नाम है हॉर्लिक्स। उस पर साफ़-साफ़ लिखा है "It's malted" और Malted का मतलब ही होता है आटा/सत्तू। जौ का सत्तू, चने का सत्तू बाजार से खरीद लीजिये 50 -60 रूपये किलो मिल जायेगा और हॉर्लिक्स बिक रहा है 400 रूपये किलो के हिसाब से। भारतीय बाजार में जितने हेल्थ टॉनिक मिल रहे हैं उनसे एक पैसे का हेल्थ नहीं मिलता और भारत के लोग हर साल 1500 करोड़ का हेल्थ टॉनिक खरीद कर पैसा विदेश भेज रहे हैं। सिर्फ Mental Satisfaction है और कुछ नहीं ? हमारे देश के लोग अजीब किस्म के निराशावाद में जी रहे हैं। ये इग्नोरेंस अनपढ़ लोगों में होता तो मुझे समझ में भी आता लेकिन भारत के पढ़े लिखे लोगों में ये सबसे ज्यादा है। इनमें मिलाये हुए तत्वों की सूची नीचे दी गयी है जो कि इनके UK की वेबसाइट से ली गयी है, भारत के वेबसाइट पर ये उपलब्ध नहीं है।
Ingredients of Horlicks : Wheat Flour (55%), Malted Barley (15%), Dried Whey, Sugar, Calcium Carbonate, Vegetable Fat, Dried Skimmed Milk, Salt, Vitamins (C, Niacin, E, Pantothenic Acid, B6, B2, B1, Folic Acid, A , Biotin, D, B12), Ferric Pyrophosphate, Zinc Oxide. May contain traces of soyabeans.

Source : http://www.horlicks.co.uk/downloads/Horlicks-Traditional-2011.pdf


4. लाइफबॉय 

दुनिया में तीन तरह के साबुन होते हैं। एक होते हैं- बाथ सोप - मतलब नहाने का साबुन, दुसरे होते हैं- टॉयलेट सोप - मतलब हाथ धोने का साबुन और एक होता है - कार्बोलिक सोप - मतलब जानवरों को नहलाने का साबुन और ये लाइफबॉय साबुन, कार्बोलिक साबुन है। ये कंपनी वाले कहते हैं, मैं नहीं कह रहा हूँ और यूरोप के देशों में जिस लाइफबॉय से कुत्ते नहाते हैं, बिल्लियाँ नहाती हैं, घोड़े नहाते हैं उसी लाइफ बॉय से भारत के लोग रगड़-रगड़ के नहाते हैं। प्रचार देख के ऐसा हमारा दिमाग ख़राब हुआ है कि अकेले भारत में ये लाइफबॉय साबुन एक साल में 7 करोड़ बिक जाता है और तो और कुछ दिन पहले तक लाइफबॉय साबुन बिक रहा था "Family Doctors Welfare Association of India"  द्वारा प्रमाणित" के नाम से। ये कौन सा एसोसिएसन है ? ये कब बना ? और कब इन्होने लाइफबॉय को प्रमाण-पत्र दे दिया था ? लेकिन रोज इनका विज्ञापन था ये और हम सब ख़ामोशी के साथ बैठे हुए इसको देख रहे हैं कि कैसे देश के साथ भयंकर गद्दारी और बेईमानी का काम चल रहा है और लाइफबॉय के प्रचार पर ध्यान दीजियेगा, उनका कहना है कि "ये मैल में छिपे कीटाणुओं को धो डालता है" ध्यान दीजियेगा, मैल को धोता है, कीटाणुओं को नहीं धोता और कीटाणुओं को धोता है, मारता नहीं। सबसे घटिया साबुन भारत के बाजार में बिक रहा है और हम इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके घटिया होने का प्रमाण क्या है ? साबुन में केमिकल जितना ज्यादा, साबुन उतना ही घटिया। मैं आपको इसका प्रमाण देता हूँ, आप लाइफबॉय से नहाइए, नहाने के बाद जब शरीर सुख जाये तो नाख़ून से शरीर पर लाइन खिचिये, सफ़ेद रंग की लाइन खिंच जाएगी, ये लाइन कैसे खिंची ? लाइफबॉय के केमिकल कचरे ने आपके त्वचा के प्राकृतिक तेल को पूरी तरह से सुखा दिया, तो त्वचा एकदम रुखी-सुखी हो गयी और बार-बार जब आप इसको प्रयोग करेंगे तो एक दिन आपको एक्ज़िमा होना ही है, सोरैसिस होना ही है, अन्य चमड़ी के रोग होने ही वाले हैं। एक दिन मैंने इस कंपनी के बैलेंस शीट में से इस लाइफबॉय का लागत खर्च (Cost of Production) निकाला तो वो है 2 रुपया और भारत के बाजार में बिकता है 18 -20 रुपया में, अब आप इसका लाभ प्रतिशत निकाल लीजिये।

http://www.wisegeek.com/what-is-carbolic-soap.htm


5. रिफाइण्ड

आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइन तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है। कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं। इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जमकर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होनें डॉक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया। डॉक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन (Prescription) में रिफाइण्ड तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना। ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ, अब क्यों, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं।  

ये रिफाइण्ड तेल बनता कैसे हैं ? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे। किसी भी तेल को रिफाइण्ड करने में 6 से 7 केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइण्ड करने में ये संख्या 12 -13 हो जाती है। ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम ऑर्गैनिक कहते हैं। तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका Combination जहर के तरफ ही ले जाता है। इसलिए रिफाइण्ड तेल, डबल रिफाइण्ड तेल गलती से भी न खाएं।फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ? तो आप शुद्ध तेल खाइए, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का। अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है। हमलोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है। तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic Content है प्रोटीन के लिए। 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब। अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी और ऐसे रिफाइण्ड तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि, आदि। जिन-जिन घरों में पूरे मनोयोग से रिफाइण्ड तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे। अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइण्ड तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही हैं।

जब हमने सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इस पर काम किया और उन डोक्टरों ने जो कुछ भी बताया उसको मैं एक लाइन में बताता हूँ क्योंकि वो रिपोर्ट काफी मोटी है और सब का जिक्र करना मुश्किल है, उन्होंने कहा "तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइण्ड में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रही है।" आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ? मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotein), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब। तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे।

अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है। मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में, वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट करके भारत के बाजार में बेचा जा रहा है। 7 -8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दूसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है। भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइण्ड तेल और डबल रिफाइण्ड तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिखकर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी Dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर Dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में Dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है।

http://www.healthy-eating-politics.com/vegetable-oil.html

क्रमशः .....................

--- भाई राजीव दीक्षित के व्याख्यानों से 

इन लूटेरी कंपनियों के दिखावे पर मत जाओ, अपनी अक्ल लगाओ  !
जय हिन्द, जय भारत !!

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