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Sunday, September 16, 2012

श्री सद्गुरु साटम महाराज




श्री सद्गुरु साटम महाराज के रूप में अलौकिक तेज व लालिमा थी. उनका गठीला बदन व कद पॉंच फीट का था. वो वामन अवतार विष्णु की तरह लगते थे. उनकी वाणी बहुत ही मिठी व मधुर थी. उनके कद की महत्वतता कभी बहुत लंबी लगती तो कभी बहुत साधारण लगती. उनका वजन कभी भारी तो कभी बहुत हल्का लगता, इनका हल्का की बुजुर्ग भी फूलों समान उन्हें उठा लेते. वैसे तो वे दाणोली गॉंव के थेप र वो एक जगह पर कभी भी नही रहते थे. वो जंगलो, गॉंवो मे घूमते रहते और अपने भक्तों की समस्याओं को पूर्णतया हल करते थे. दाणोली मे वो कभी नाजरी नदी में स्नान करते तो कभी गौशाला मे सोते थे. कभी कभी तो वो चार पॉंच दिनों तक बिना कुछ खायें पियें रहते थे. कभी कभी वो एक जिद्दी बच्चे की तरह व्यवहार करते थे. तो कभी पागलों जैसा व्यवहार करते थे, तो कभी वो अपने हाथ में ली हुई चीजों से मार बैठते तो कभी कुछ अपशब्द भी कहते थे. पर इन सबके पीछे उनका लोगों के प्रति प्यार व चिंता थी. मगर यह देखा गया कि जो उनकी मार और गालियों को सह लेते थे. उनकी सभी बिमारियों और दु:खो का समाधान हो जाता था. वे कभी हसते तो कभी रोते थे. इस सबके पीछे कहीं किसी सुखद या दु:खद घटना के घटित होने का संदेश था. औपचारिक ज्ञान की कमी के बावजूद वो कई भाषाऐं जानते थे. वे उसका प्रयोग सिर्फ वार्तालाप में नही परंतु गाना गाने में भी करते थे. वो कभी नाचने लगते और इस नृत्य में इतना खो जाते थे कि वो पूर्णतया नग्न हो जाते थे, और कभी कभी तो वो जमीन पर लोटने लगते थे. उनके लिए उनके शरीर और वस्त्रों की कोई अर्हामयत नही थी. उन्हें अपने शरीर के पंचतत्वो और इंद्रियो पर नियंत्रण था. एक बार उन्होंने देखते ही देखते आसमान से वर्षा कर दी जब कि आसमान पूरा साफ था, और एक बार एक धार्मिक कार्य में वर्षा के कारण व्यवधान हो रहा था उसे अपनी एक दृष्टि मात्र से रोक दिया. वो कभी औरत-मर्द, राजा-रंक मे फर्क नही करते थे. सभी से एक समान व्यवहार करते थे. उन्हें अपने भोजन की कभी चिंता नही रही. जिस तरह चीता अपने भोजन के लिए नही भटकती, जो मिल गया उसे खॉं लेती है उसी तरह वे भी जो कुछ मिलता उसे स्वीकार करते थे. वे सभी बंधनो से आजाद थे. इसके बावजूद श्री साटम महाराज सभी की सहायता करते पर कभी किसी पर एहसान नही जताते थे. वो हमेशा कहते थे कि ईश्र्वर हमेशा तुम्हारी रक्षा करेंगे तुम्हें तुम्हारी ईमानदारी व निष्ठा का फल अवश्य मिलेगा, केवल ईश्र्वर पर विश्र्वास करो. श्री साटम महाराज के चरण कमलों के वजह से दाणोली की धरती धार्मिक हो गई और नाजरी का पानी पवित्र होकर अविरत बहने लगा. दाणोली कि धरती और नाजरी के पानी ने लोगों के मन में उनके प्रति विश्र्वास जागृत किया. श्री साटम महाराज ने मृत्यु के पहले लोगों से यह वायदा किया कि जो भक्त सच्चे दिल से उन्हें व उनके मंत्रों को याद करेंगे वे उन भक्तों के दिल में हमेशा विराजमान रहेंगे.

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