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Wednesday, October 03, 2012

गोरेपन की क्रीम (फ़ेयर एंड लवली)से सावधान :

"क्यों मूर्खों की तरह खूबसूरती निखारने (फ़ेयरनेस क्रीम-) चेहरे पर पोते जा रहे हैं?
क्या हम “गोरे रंग़” के प्रति मानसिक गुलामी से पीड़ित हैं?

आजकल हर इंसान खूबसूरत दिखना चाहता है और इसके लिए वो तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल करता है। लेकिन इस हड़बड़ी में वो भूल जाता है कि जो कॉस्मेटिक्स वो इस्तेमाल कर रहा है जो पूरी तरह से सुरिक्षतहै/ हानिकारक है।सौ
न्दर्य प्रसाधनों (फ़ेयर एंड लवली)के इस्तेमाल से त्वचा/चेहरे की कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

खूबसूरती निखारने/ बनाने वाले क्रीमों में एजेलेक एसिड एडेपलेन, ट्रेटिनोइन, सोडियम सल्फासेटेमाइड, किलनडामाइसिन एरथ्रोमाइसिन, सेलीसाइलिक एसिड, हाइड्रोकाटिजोन तथा बेंजोइल पेरौक्साइड जैसे तत्व होते हैं जिनके इस्तेमाल से त्वचा की कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

पहले केवल महिलाएं गोरा रंग चाहती थीं पर अब पुरुष भी चाहते हैं कि उनका रंग गोरा हो. शायद ये बॉलीवुड का असर है क्योंकि फिल्मों में हमेशा से ही नायक-नायिकाओं को गोरा दिखाया गया है या शायद ये गोरे रंग का आकर्षण है जो हमें अंग्रेज़ विरासत में दे गए हैं ।

भारतीयों के दिलोदिमाग में गोरे रंग की “श्रेष्ठता” और काले रंग के प्रति तिरस्कार गहरे तक पैठ बना चुका है, और इसे लगातार हवा देती हैं “गोरा बनाने वाली क्रीमें”।भारत में गोरेपन के लिए एक तरह की दीवानगी दिखाई देती है और इसका लाभ यह कंपनी उठाना चाहती है ।

क्या वाकई फ़ेयर एन्ड लवली लगाने से गोरे हो जाते हैं, तो मुझे हँसी छूट गई, अरे भई अगर क्रीम लगाने से ही गोरे हो जाते तो सारी दुनिया गोरी ही होती।बेचारे अफ़्रीका वाले कालिये भी गोरे हो जाते।

स्लमडॉग मिलिनियर में दिखाया गया एक सीन अक्सर याद आता है, जब एक काला लड़का फ़ेयर एन्ड लवली क्रीम लगाता है और गोरा नहीं होता तो वह क्रीम उसी पोस्टर पर फ़ेंकता है।

भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण (राम,कृष्ण साँवले थे जग जाहिर है) के देश में अब हर कोई गोरा बनने के लिए मरा जा रहा है। भारत का हवामान गर्मी का है इसी गर्मी की वजह यहाँ के लोगों की चमड़ी सावली / काली होती है |

असल में ये सारा खेल “बाजार” से जुड़ा हुआ भी है, कम्पनियों ने भारतीयों की “गोरा बनने” की चाहत को काफ़ी पहले से भाँप लिया है। पहले वे सिर्फ़ औरतों के लिये क्रीमें बनाते थे, अब जब खपत स्थिर हो गई तो मर्दों के लिये भी” गोरेपन की “अलग-हट के” क्रीम आ गई। अकेले “फ़ेयर एंड लवली” क्रीम का भारतीय बाजार 600 करोड़ रुपये का है |

एक विज्ञापन में काली लड़की निराश है, अचानक उसे एक क्रीम मिलती है, वह गोरी हो जाती है और सीधे एयर-होस्टेस या टीवी अनाउंसर बन जाती है।

दूसरे विज्ञापन में एक लड़की “सिर्फ़ पाँच दिन” में गोरी बन जाती है, और उसके माता-पिता भी मूर्खों जैसे हँसते हुए दिखाये जाते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब एक काला लड़का (शायद अपनी बहन की) क्रीम चुराकर लगाता है और अचानक शाहरुख खान “ए ए ए ए ए ए ए ए ए मर्द होकर लड़कों वाली क्रीम लगाते हो?” कहते हुए प्रकट होता है, बस फ़िर वह लड़का गोरा बनकर लड़कियों के बीच से इठलाता हुआ निकलता है।

असल में ये क्रीमें करती क्या हैं और इनमें क्या-क्या मिला हुआ है। FDA(Food and Drug Administration) द्वारा की गई एक टेस्ट में अधिकतर क्रीमों में “पारे” (Mercury) का स्तर बहुत ज्यादा पाया गया, जबकि अधिकतर देशों में सन-स्क्रीन और फ़ेयरनेस क्रीमों में मरकरी का प्रयोग प्रतिबन्धित है।

अधिकतर डॉक्टरों का मानना है कि इनमें कई घातक रसायन मिले होते हैं, लेकिन इन कम्पनियों का विज्ञापन इतना जोरदार होता है कि लोग झाँसे में आ ही जाते हैं।

दो सौ वर्षों की मानसिक गुलामी ने हमारे दिमागों में “गोरे रंग” की श्रेष्ठता का भ्रम पैदा किया है? अंग्रेज जाने के 64 साल बाद भी त्वचा का रंग क्यों हमारे दिमाग में खलल पैदा करता है?अंग्रेज चले गये मगर हमारी गोरी चमड़ी का और अंग्रेजी भाषा का आकर्षण ख़तम नही हुवा. ! और इसी का दुरुपयोग करके कंपनिया गोरेपन का मायाजाल बुनकर क्रीम बेच कर करोडो रूपया कमा रही है |

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