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Wednesday, October 03, 2012

विकास नहीं हुआ है सिर्फ विनाश हुआ है


पिछले 65 सालों से हमारे देश के नेता आम जनता को मूर्ख बनाकर भारत को बेच रहे हैं और कह रहे हैं विकास हो रहा है। आइये नज़र डालते हैं इनके विकास के पैमानों पर::

* 1947 में 1 डॉलर= 1 रुपया होता था और आज 1 डॉलर = 55 रुपये हो गया ये विकास है।
* 1947 में जब हम आज़ाद हुए हमारे ऊपर एक पैसे का विदेशी कर्ज़ नहीं था और अब हिंदुस्तान का प्रत्येक बच्चा 8,500 रुपये का कर्जदार है ये विकास है।
* 1947 में सारी दुनिया में जितना निर्यात होता था उसका 2% हिस्सा हिंदुस्तान का था और आज हिंदुस्तान का हिस्सा 0.4% रह गया है ये विकास है।
* 1947 में रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार विदेशी व्यापार का घाटा (आयात निर्यात का घाटा) 2 करोड़ रुपये था और अब ये घाटा 20-25 हज़ार करोड़ हो गया है ये विकास है।
* 1947 में 25 पैसे किलो गेहूं मिलता था और आज 18-20 रुपये किलो मिलता है ये विकास है।
* 1947 में 38 पैसे प्रति लीटर का शुद्ध गाय का दूध मिलता था और अब 20 रुपये किलो का पाउडर का दूध पीजिए और कहिए आपका विकास हो गया है।
* 1947 में 3 पैसे की एक किलो सब्जी मिलती है और आज 20 रुपये की एक पाव सब्जी खरीदिए और कहिए आपका विकास हो गया है।
* 1947 में हापुस आम खाने को ही नही बांटने के लिए भी मिलता था और अब "विदेशी Mazza" पीजिए और कहिए हमारा विकास हो गया है।
* 1947 में भरपूर मात्रा में पानी था नदियां, तालाब भरे रहते थे और आज 15 रुपये की बोतल खरीदकर पीते हैं, फव्वारा देखकर खुश होते हैं और कहते हैं हमारे विकास हो गया है।
* जिस देश में दूध और पानी कभी बिकता नहीं था, नदियां बहा करती थीं, वहाँ थैलियों में दूध और पानी बिक रहा है और हम कह रहे हैं हमारा विकास हो गया है।
* पानी (पेप्सी/ कोला वाला) मिट्टी के तेल और डीजल से महंगा बिक रहा है और हम कह रहे हैं विकास हो गया है।
* दुनिया का हर विज्ञान कहता है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड बाहर निकालो और हम पेप्सी/ कोक के साथ घुली हुई कार्बन डाइ ऑक्साइड गटागट पी रहे हैं और कह रहे हैं हमारा विकास हो गया है।
* हमारे देश में विदेशी कंपनियां (कैडबरी) गाँव के किसानों से 12-15 रुपये किलो में दूध खरीदकर उसकी चॉक्लेट बनाकर 180-200 रुपये किलो बेचती हैं। बादाम की बर्फी से महंगी चॉक्लेट बिकती है जिसमें जहर मिला हुआ है निकेल और क्रोमियम का और हम कहते हैं विकास हो गया है।

सही मायने में कोई विकास नहीं हुआ है सिर्फ विनाश हुआ है। देश को विदेशी कंपनियों के हाथों गिरवी रखा गया है इसके अलावा कुछ नहीं हुआ है। आप जो बड़े बड़े होटल, बिल्डिंग, फ़्लाइओवर, पुल आदि जो कुछ विकास के पैमाने के लिए देखते हैं ये सब विश्व बैंक के उधार के पैसों का है और इसको हमें चुकाना भी है जिसको चुकाने की हैसियत अब भारत सरकार की नहीं रही इसलिए विदेशी कंपनियों के हाथों देश को बेचा जा रहा है। हालत ये है की भारत सरकार के कुल बजट का एक तिहाई "विदेशी कर्जे का ब्याज चुकाने" में चला जाता है और उधार के पैसों पर टिकी अर्थव्यवस्था ज्यादा दिन नहीं टिक सकती।

जय हिन्द, जय भारत !

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